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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org श्री विपाक सूत्र [दूसरा अध्याय १२० ] नायक को अथवा यात्री - समूह के प्रधान को सार्थवाह कहते हैं ) निवास किया करता था। जोकि बड़ा धनवान् था उसकी पत्नी का नाम सुभद्रा था । तथा उनके उज्झितक नाम का एक बालक था जोकि सुन्दर शरीर अथच मनोहर श्राकृति वाला था । सूत्रकार के “ _ - ग्रड्ढे ० १० – इस सांकेतिक पाठ से" - दिते, वित्थिरण- विउल-भवण-सयणासण-जाण-वाहणाइराणे, बहुधण- बहुजायरूवरयर, ओगपश्रोगसंपत्त, विच्छुड्डियविउलभतपाणे, बहुदा सीदास गाम हिसगवेल यप्पभूप, बहुजणस्स अपरिभूर - " [ छाया - दीप्तो, विस्तीर्ण- विपुल भवनशयनासन यान --वाहनाकीर्णी, बहुधन बहुजातरूपरजत, आयोगप्रयोगसंप्रयुक्तो, विच्छर्दित - विपुल- भक्तपानो, बहुदासीदास गोमहिषगवेलकप्रभूतो, बहुजनस्य अपरिभूतः | यह ग्रहण करना। इस का अर्थ निम्तोक्त है— वह विजयमंत्र सार्थवाह दीप्त तेजस्वी, विस्तृत और विपुल भवन (मकान ), शयन ( शय्या), और आसन (चौंको आदि), यान गाड़ी आदि), और वाइन (घोड़े आदि) तथा धन, सुवण और रजत ( चान्दी) की बहुलता से युक्त था. अधम ऋण लेने वाले) को वह अनेक प्रकार से व्याज पर रुपया दिया करता था। उसके वहां भोजन करने के अनन्तर भी बहुत सा अन्न बाकी बच जाता था, उसके घर में दास, दासी आदि पुरुष और गाय, भैंस और बकरी आदि पशु थे, तथा वह बहुतों से भी पराभव को प्राप्त नहीं हो पाता था अथवा जनता में वह सशक्त एवं सम्माननीय था । " श्रहीण ० - ० - " इस संकेत से वह समस्त पाठ जो कि प्रथम अध्ययन में वर्णित मृगादेवी के सम्बन्ध में वर्णित किया गया है, उसका ग्रहण समझना । “ – श्रहीण० जाव सुरुवे - " इस पाठ के " जाव यावत् " पद से " - श्रहीण पडिपुराणपंचिदियसरीरे, लक्खणवं जणगुणोववेये, माणुम्माणप्पमाण- पडिपुराणसुजायसव्वंगसुंदरंगे, ससिसा - माकारे, कंते, पियदसणे - " [ छाया - अहीन परिपूर्ण – पञ्चेन्द्रियशरीरः, लक्षणव्यंजनगुणोपेतः, मानोन्मानप्रमाणपरिपूर्ण सुजातसर्वांगसुन्दरांगः शशिसौम्याकारः, कान्तः, प्रियदर्शनः ] यह ग्रहण करना अर्थात् वह उज्झितक कुमार कैला था ? इस का वर्णन इस पाठ में किया गया है । तात्पर्य यह है कि उसकी पांचों इन्द्रियें सम्पूर्ण एव निर्दोष थीं ? और उसका शरीर लक्षण, व्यंजन और समस्त पाठ Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir (१) लक्षण - विद्या, धन और प्रभुत्व आदि के परिचायक हस्तगत (हाथ की रेखाओं में बने हुए) स्वस्तिक आदि ही यहां पर लक्षण शब्द से अभिप्रेत हैं । व्यंजन - शरीरगत मस्सा तिलक आदि चिन्हों की व्यंजन संज्ञा है । गुण-- विनय, सुशीलता और मेवा भाव आदि गुण कहे जाते हैं । मान - जिसके द्वारा पदार्थ मापा जाय उसे मान कहते हैं । अथवा कोई पुरुष जल से भरे [ चार आक प्रमाण For Private And Personal १ हुए कुंड में प्रवेश करे और प्रवेश करने पर यदि कुंड में से एक द्रोण १६ सेर ] प्रमाण जल बाहिर निकल जावे तो वह पुरुष मानयुक्त कहलाता है । उन्मान - मान से अधिक अथवा अर्द्धभार को उन्मान कहते हैं । प्रमाण - अपनी गुलि से १०८ इतनी ऊंचाई हो वह प्रमाणयुक्त कहलाता है । गुलि पर्यन्त ऊंचाई की प्रमाण संज्ञा है, जिस पुरुष की इस प्रकार मान, उन्मान और प्रमाण युक्त, यथा योग्य अवयवों से संघटित शरीर वाले पुरुष को सुजातसर्वांगसुन्दर कहा जाता है । प्रियदर्शन - जिस के देखने से मन में आकर्षण पैदा हो, अथवा जिस का दर्शन मन को लुभावे उसे प्रियदर्शन कहते हैं । -
SR No.020898
Book TitleVipak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni, Hemchandra Maharaj
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year1954
Total Pages829
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size20 MB
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