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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir ८८1 श्री विपाक सूत्र (प्रथम अध्याय हो ?-" यह पृच्छा की थी। जिस के उत्तर में भगवान् ने विजय नरेश के ज्येष्ठपुत्र मृगापुत्र का नाम बताया था । उसे देखने के पश्चात् गौतम स्वामी ने भगवान् से मृगापुत्र के पूर्व जन्म का वृत्तान्त पूच्छा था। जिसको भगवान् ने सुनाना प्रारंभ किया था। एकादि राष्ट्रकूट के रूप में मृगापुत्र के पूर्वजन्म का वृत्तान्त सुना देने पर भगवान् ने कहा कि हे गौतम ! यह तुम्हारे प्रश्न का उत्तर है । इस से तुम्हें अवगत हो गया होगा कि मृग। पुत्र अपने ही पूर्वकृत प्राचीन कमों का यह अशुभ फल पा रहा है । इसी भाव को सूत्रकार ने "-एवं खलु गोयमा ! मियापुत्त , इत्यादि शब्दों द्वारा अभिव्यक्त किया है । वीर प्रभु से मृगापुत्र के पूर्वभव सम्बन्धी वृत्तान्त को सुनकर परम सन्तोष को प्राप्त हुए गौतम स्वामी ने उसके-मृगापत्र के आगामी भव के सम्बन्ध में भी जानकारी प्राप्त करने की इच्छा से जो कुछ भगवान् से निवेदन किया अब सूत्रकार उसका वर्णन करते हैं - मूल-मियापुत्ते णं भंते ! दारए इओ कालमासे कालं किच्चा कहिं गमिहिति ? कहिं उववज्जिहिति? पदार्थ भंते !- हे भगवन् ! । मियापुने-मृगापुत्र नामक । दारए-- बालक । णंवाक्यालंकारार्थक है । इश्रो-- यहां से । कालमासे- कालमास - मरणावसर में । कालं किच्चा - काल करके । कहिं-कहां । गमिहिति-जायगा ? और । कहिं-कहां पर । उववज्जिहितिउत्पन्न होगा ? मूलार्थ - हे भावन् ! मृगापुत्र नामक बालक मृत्यु का समय आने पर यहां से काल कर के कहां जायगा और कहाँ पर उत्पन्न होगा ? टीका-पहली नरक से निकल कर इस नारकीय अवस्था में पड़े हए मुगापत्र के आगामी जन्म के सम्बन्ध में गौतम स्वामी की ओर से वीर प्रभु के चरणों में जो प्रश्न किया गया है वह बड़ा ही महत्त्व - पूर्ण प्रतीत होता है । इस प्रकार की दुरवस्था का अनुभव करने वाले जीवों की आगामी जन्मों में क्या दश होती है ? इस विषय का ज्ञान प्राप्त करना मुमुक्षु पुरुष के लिये उतना ही आवश्यक है, जितना कि वर्तमान से अतीत अवस्था का । तात्पर्य यह है कि जीवों की वर्तमान ऊंच नीच दशा से उनके पूर्वोपार्जित शुभाशुभ कर्मों का सामान्य रूप से ज्ञान होने पर भी विशेष रूप से ज्ञान प्राप्त करने की अभिलाषा रहती है, किसी प्रकार उसकी पूर्ति हो जाने पर भविष्य की जिज्ञासा तो और भी उत्कट हो जाती है । अथा। यदि किसी एक व्यक्ति के पूर्व जन्म का ययावत् वृतान्त किसी अतिशय ज्ञानो से प्राप्त हो जाय तो उस व्यक्ति के भविष्य के विषय में अपने आप जिज्ञासा उठती है। जिस की पूर्ति के लिये अन्त:करण लालायित बना रहता है । सद्भाग्य से उस की पति हो जाने पर विकास -गामी आत्मा को अपने गन्तव्य मार्ग को परेष्कत करने-सुधारने का साध अवसर मिल जाता है । इसी उद्देश को लेकर वीर भगवान से गौतम स्वामी ने मुगापत्र के आगामी भवों के सम्बन्ध में पूछने का स्तुत्य प्रयत्न किया है । गौतम स्वामी के प्रश्न को सुन कर उसके उत्तर में वीर प्रभु ने जो कुछ फरमया अब सूत्रकार उसका वर्णन करते हैं - मूल--*गोतमा ! मियापुत्ते दारए छब्बीसं वामाति परमाउयं पालइत्ता कालमासे (१) छाया- मृगापुत्रो भदन्त ! दारक : इतः कालमासे कालं कृत्वा कुत्र गमिष्यति ? कुत्रोपपत्स्यते ? (२) छापा - गौतम ! मृगापुत्रो दारकः षड्विंशतिं वर्षाणि परमायु: पालयित्वा कालमासे कालं For Private And Personal
SR No.020898
Book TitleVipak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni, Hemchandra Maharaj
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year1954
Total Pages829
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size20 MB
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