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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir ७२] श्री विपाक सूत्र - [प्रथम अध्याय वस्तिद्धिधानुवासाख्यो-निरूहश्च ततः परम् । बस्तिभिर्दीयते यस्मात्तस्माद् बस्तिरिति स्मृतः॥१॥ अर्थात् बस्ति दो प्रकार की होती है -१-अनुवासना बस्ति, २-- निरूह बस्ति । इस विधान में यथा नियम निधारित ओषधियों का बस्ति चर्म निर्मित कोथली)द्वारा प्रयोग किया जाता है इस लिये इसे बस्त कहते हैं । तथा सुश्रुत --संहिता में अनुवासना तथा निरूह इन दोनों की निरुक्ति इस प्रकार की है "-अनुवसन्नपि न दुष्पति, अनुदिवसं वा दीयते इत्यनुवासनाबस्तिः -"जो अनुवासबासी हो कर भी दूषित न हो, अथवा जो प्रतिदिन दी जावे उसे अनुवासना- बस्ति कहते हैं 1 ... "दोषनिरणाच्छरीररोहणाद्वा निरूहः, -- [ दोषों का निहरण-नाश कराने के कारण अथवा शरीर का निःशेषतया सम्पूर्ण रूप से रोहण कराने के कारण इसे निरूह-निरूहबस्ति कहा है। आचार्य अभयदेव सूरि ने बस्ति कर्म का अर्थ चर्मवेष्टन द्वारा शिर आदि अंगों को स्निग्ध - स्नेह पुरित करना, अथवा गुदा में वर्ति आदि का प्रक्षेप करना" यह किया है । और अनुवास, कर तथा शिरो बस्ति को बस्ति कर्म का ही अवान्तर भेद माना है । इस के अतिरिक्त अनवास और निरूह बस्ति के स्वरूप में अन्तर न मानते हुए उन के प्रयोगों में केवल द्रव्य कत विशेषता को ही स्वीकार किया है तात्पर्य यह है कि अनुवासना में जिन औषधि---द्रव्यों का उप रोग किया जाता है, निरूह बस्ति में उनसे भिन्न द्रव्य उपयुक्त होते हैं। बंगसेन के बस्ति कर्माधिकार प्रकरण में बस्ति सम्बन्धी निरूपण इस प्रकार किया है - कषायक्षरितो बस्तिनिरूहः सन्निगद्यते । य: स्नेहैर्दीयते स स्यादनुवासन-संज्ञकः ॥४॥ बस्तिभिर्दीयते यस्मात्तस्माद् बस्तिरिति स्मृतः । निरूहस्यापरं नाम प्रोक्तमास्थापनं बुधैः ।।५।। निरूहो दापहरणा-द्रोहणादथवा तनोः, आस्थापयेद् वयो देहं यस्मादास्थापनः स्मृतः ।।६।। निशानुवासात् स्नेहोऽन्वासनश्चानुवासनः ॥७॥ विरक्तसम्पूर्णहिताशनस्य, आस्थाप्यशय्यामनुदायते यत् । तदुच्यते वाप्यनुवासनं च, तेनानुवासश्च बभूव नाम ।।८।। उत्कृष्टावयवे दानाद् बस्तिरुत्तरसंज्ञितः ॥९॥ इत्यादि अर्थात्-क्वाथ और दूध के द्वारा जो बस्ति दी जाती है उस को निरूह बस्ति कहते हैं । तथा घी अथवा तैलादि के द्वारा जो बस्ति दा जावे उसे अनुवासन कहा है। मृगादि के मूत्राशय की कोथली रूप साधन के द्वारा पिचकारी दी जाती है इस कारण इस पिचकारी को बस्ति कहते हैं । विद्वानों ने निरूह बस्ति का अपर नाम "प्रास्थापना" बस्ति भी कहा है । निरूह बस्ति दोषों को अपहरण करती है, अथवा देह को अारोपण करतो है, इस कारण इसकी निरूह संज्ञा है । और आयु तथा देह को स्थापन करती है इसकारण इसे आस्थापनबस्ति कहते हैं ||६|| (१) "अनुवासणाहि य” ति-अपानेन जठरे तैनप्रक्षेपणैः । “बत्थिकम्मेहि य' ति चर्मवेष्टन -प्रयोगेण शिरः प्रभृतोनां स्नेहपूरणः, गुदे वा वादिप्रक्षेपणः । “निरूहेहि य” त्ति निरूहः अनुवास एव, केवलं द्रव्यकृतो विशेषः । प्रागक्त -- बस्तिकर्माणि सामान्यानि अनुवासना - निरूह -शिरोवस्त यस्तद् भेदाः। For Private And Personal
SR No.020898
Book TitleVipak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni, Hemchandra Maharaj
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year1954
Total Pages829
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size20 MB
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