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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir प्रथम अध्याय हिन्दी भाषा टीका सहित । पर जो मलना है वह ही उद्वतन कहलाता है । (३) स्नेहपान-घृतादि स्निग्ध-चिकने पदार्थों के पान को स्नेह-पान कहते हैं। (४) वमन-उलटी या के का ही संस्कृत नाम वमन है । चरक संहिता के कल्प स्थान में इस की परिभाषा इस प्रकार की गई है : -तत्र दोषहरण चूर्वभागं वमनसंज्ञकम्, अर्थात् ऊर्ध्व भागो द्वारा दोषों का निकालना- मुख द्वारा दोषों का निष्कासन वमन कहलाता है। यद्यपि वैद्यक --- ग्रन्थों में वमन विरेचनादि से पूर्व स्वेदविधि का विधान' देखने में आता है, और यहां पर उस का उल्लेख वमन तथा विरेचन के अनन्तर किया गया है, इसका कारण यह प्रतीत होता है कि सूत्रकार को इन का क्रम पूर्वक निर्देश करना अभिमत नहीं, अपितु रोग - शान्ति के उपायों का नियोजन ही अभिप्रेत है, फिर वह क्रमपूर्वक हो या क्रमविकल । अन्यथा अवदाहन तथा अवस्नान के अनन्तर अनुवासनादि बस्तिकर्म का सूत्रकार उल्लेख न करते । (५) विरेचन-अधोद्वार से मल का निकालना ही विरेचन है। चरक संहिता कल्पस्थान में विरेचन शब्द की परिभाषा इस प्रकार की गई है । "अधोभागं विरेचनसंज्ञकमुभयं वा शरीरमल -- विरेचनाद् विरेचन राब्दं लभते" अर्थात् – अधो भाग से दोषों का निकालना विरेचन कहलाता है, अथवा शरीर के मल का रेचन करने से उर्ध्वविरेचन तथा अधोविरेचन इस प्रकार दोनों को विरेचन शब्द से पुकारा जा सकता है । इन में उर्ध्वविरेचन की वमन संज्ञा है और अधोविरेचन को विरेचन कहा है । संक्षेप से कहें तो मुख द्वारा मलादि का अपसरण वमन है, और गुदा के द्वारा मल निस्सारण की विरेचन संज्ञा है। (६) २स्वेदन - स्वेदन का सामान्य अर्थ पसीना देना है। (७) अवदाहन-गर्म लोहे की कोश आदि से चर्म (फोडे फुन्सी आदि) पर दागने को अवदाहन कहते हैं । बहुत सी ऐसी व्याधियें हैं जिनकी दागना ही चिकित्सा है। चरक दि ग्रन्थों में इस का कोई विशेष उल्लेख देखने में नहीं आता । (८) अवस्नान-शरीर की चिकनाहट को दूर करने वाले अनेकविध द्रव्यों से मिश्रित तथा संस्कारित जल से स्नान कराने को अवस्नान कहते हैं । (९, १०, ११) अनुवासना - बस्तिकर्म-निरुह - शाङ्गधर संहिता [अ. ५ ] में बस्ति का वर्णन इस प्रकार किया गया है (१) येषां नस्यं विधातव्यं, बस्तिश्चैवापि देहिनाम् ।। __ शोधनीयाश्च ये केचित् , पूर्व स्वेद्यास्तु ते मताः ॥१॥ अर्थात् - जिस को नस्य ( वह दवा या चूर्णादि जिसे नाक के रास्ते दिमाग में चढ़ाते हैं ) देना हो, बस्तिकर्म करना हो, अथवा वमन या विरेचन के द्वारा शुद्ध करना हो. उसे प्रथम स्वेदित करना चाहिये, उसके शरीर में प्रथम स्वेद देना चाहिए । [वंगसेन में स्वेदाधिकार ] (२) मूल में उल्लेख किये गये "सेयण' के सेचन और स्वेदन ये दो प्रतिरूप होते हैं । यहां पर सेचन की अपेक्षा स्वेदन का ग्रहण करना ही युक्ति संगत प्रतीत होता है । कारण कि चिकित्सावधि में स्वेदन का ही अधिकार है । सेचन नाम की कोई चिकित्सा नहीं। और यदि "सेचन" प्रतिरूप के लिये ही आग्रह हो तो सेचन का अर्थ जलसिंचन ही हो सकता है । उसका उपयोग तो प्रायः मूर्खा-रोग में किया जाता है । For Private And Personal
SR No.020898
Book TitleVipak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni, Hemchandra Maharaj
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year1954
Total Pages829
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size20 MB
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