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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir प्रथम अध्याय । हिन्ही भाषा टीका सहित। बाताभिष्यन्द में यह समाविष्ट किया जा सकता है, जैसे कि--. निस्तादनस्तंभन रोमहर्ष-संघर्षपारुष्य-शिरोभितापाः । विशुष्कभावः शिशिराश्रु ता च वाताभिपन्ने नयने भवन्ति ॥५॥ माधवनिदाने नेत्ररोगाधिकारः] अर्थात् -- बताभिष्यन्द --वातप्रधान नेत्ररोग में सूई चुभाने सरीखी पीडा या तोड़ने नोचने सरीखी पीड़ा होती है, इस के अतिरिक्त नेत्रों में स्तंभन, जड़ता, रोमांच, करकराहट --रेता पड़ने सरीखी रड़क, और रूक्षता होती है तथा मस्तकपीड़ा और नेत्रों से शीतल अांसु गिरते हैं । (१३) कर्ण वेदना-इसका अपर नाम कर्ण शूल है। इस का निदान और लक्षण इस तरह वर्णित किया गया हैसमीरण: श्रोत्रगतोऽन्यथाचरन् , समन्ततः शूलमतीव कर्णयोः। करोति दोषैश्च यथा स्वमावृतः, स कर्णशूल: कथितो दुरासदः ॥ १ ॥ माधवनिदाने कर्णरोगाधिकारः) अर्थात् – कुपित हुआ वायु कान में दोषों के साथ आवृत हो कर कानों में विपरीत गति से विचरण करे तब उस से कानों में जो अत्यन्त शूल -वेदना ( दर्द) होती है उसे कर्णशल कहते हैं । यह रोग कष्ट साध्य बतलाया गया है। (१४) कराडू - यह उपरोग है और 'पामाका अवान्तर भेद है । इसी कारण वैद्यक ग्रन्थों में इसका स्वतन्त्र रूप से नाम निर्देश न करके भी चिकित्सा प्रकरण में इसका बराबर स्मरण किया है। (१५) दकोदर-इस का दूसरा नाम जलोदर है और उसका लक्षण यह हैस्निग्धं महत्त्परिवृद्धनाभि-समाततं पूर्णमिवाम्बुना च । यथा दृतिः तुभ्यति कंपते च, शब्दायते चापि दकोदरं तत् ॥ २४ ॥ (माधवनिदाने उदररोगाधिकारः) अर्थात् - जिस में पेट चिकना, बड़ा, तथा नाभि के चारों ओर ऊंचा हो और तनासा मालूम होता तो, पानी की पोट भरी सरीखा दिखाई दे, जिस प्रकार पानी से भरी हुई मशक हिलती है उसी प्रकार हिले अर्थात् जिस तरह मराक में भरा हुआ जल हिलता है उसी प्रकार पेट में हिले, तथा गुड गुड़ शब्द करे और काम्पे उस को दकोकर अथवा जलोदर कहते हैं । यह रोग प्रायः असाध्य ही होता है। (१६) कुष्ठ-कोढ़ का नाम है । यह एक प्रकार का रक्त और त्वचा सम्बन्धी रोग है, यह संक्रामक और घिनौना होता है । वैद्यक ग्रन्थों में कुष्ठ रोग के १८ प्रकार - मेद बतलाए हैं। उन में सात महाकुष्ठ और ग्यारह क्षद्र कुष्ठ है । इन में वात पित्त और कफ ये तीनो दोष (१) पामा यह क्षुद्रकुष्ठों में परिगिणत है, इसका लक्षण यह हैसूक्ष्मा वह्वयः पिटिकाः स्राववत्यः पामेत्युक्ताः कराडूमत्यः सदाहाः अर्थात्- जिस में त्वचा पर छोटी २ साव युक्त खुजली सहित दाह वाली अनेक पिटिकाफुन्सिये हों उसे पामा कहते हैं । (२) महाकुष्ठ-(१) कपाल (२) औदुम्बर (३) मण्डल (४) ऋक्षजिव्ह (५) पुडरींक (६) सिध्म और (७) काकण, ये सात महा कुष्ठ के नाम से प्रसिद्ध हैं । और ११ क्षुद्रकुष्ठ हैं, जैसे कि For Private And Personal
SR No.020898
Book TitleVipak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni, Hemchandra Maharaj
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year1954
Total Pages829
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size20 MB
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