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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra वि. टी० २५५ सूत्र भाषा 搖樂業 黑業業業業 www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir त्तासमणं भगवं महावीरंवंदनमंसद् दित्तानमंसित्ता सहामिणंभंते निग्ग इत्यादि यत्सूत्र पुस्तकेदृश्यते तद्वच्यमाणवाक्यानु सारेणावगन्तत्र्यं तथाहि सहा मिणं भंते निग्गंथंपावयां पत्तियामिणं भंते निग्ग थं पावयगंज हाणंदेवाणुष्मियाचंतिए बहवेराई सरतलवरमाडंबियकोटुंबिय सेट्ठिसत्यवाह पभिईयो मुडेभवित्ता आगाराओ अणगारियंपव्ययंति गोखलुच हंत हा संचाएमिपव्वइत्तए तिएवह से राई सर जावप्यभियो मुडेभवित्तंा अगाराश्रोणगारियपब्बया गोखलुहंत हा संचारमिमु' डेभवित्ता गागारा अणगारियंपव्यत्तिए श्रहण देवाणुप्रियाणं तिरपंचाणु ब्वयंसत्तसिक्खावद्वयं दुवालसविहंगिहिधम्मं पड़िवज्जिस्यामि श्रहासुदेवाणु प्पियामापविद्ध यावत् पुरोहित आदिमुं डभावयईने ग्टहस्थवासथकी अणगारथईप्रत्रज्या लेईने नहीनिचेड' तिम समर्थसु डभावथईने ग्टहस्था वासकांड़ीअणगारनी प्रब्रज्या लेईनसकु'ड' देवानुप्रियातुम्हारी समीपे पांच अणुव्रत सातशिख्यावत एवारे प्रकारे ग्टहस्थनोधर्मचंगी कारकरस्युं जिमतुमने सुखउपजे तिमअहो देवानुप्रियाधर्मनेविषे प्रमादकरमातिवारपछीते सुबाहुकुमार श्रमण भगवंतमहाबीर देव For Private and Personal Use Only 殺殺殺殺殺殺殺殺 紫黑,
SR No.020897
Book TitleVipak Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTribhagvan Vijay
PublisherCalcutta Vishvavidyalaya
Publication Year1877
Total Pages287
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size13 MB
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