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________________ विक्रम | चरित्र सायन्व भाषांतर ॥ २०॥ ॥२०॥ AGUSTUHA ASSASSICILARIN निशाशेषेऽन्यदा यक्षः प्रत्यक्षः स जगाद तम् । मच्छक्त्या सजदेहोऽसि देहि मे महिषाशतम् ॥६५॥5 ___ अन्वयः-अन्यदा सः यक्षः निशा शेषे प्रत्यक्षः तं जगाद, मत् शक्त्या सज्ज देहः असि, मे शतं महिषान् देहि ? ॥६५॥ अर्थः-पाठी एक दिवसे ते धनंजय यक्षे पाछली रात्रिए प्रत्यक्ष थइने तेने कर्दा के, मारी शक्तिबी तुं निरोगी शरीरवाळो थयोछ, (माटे हो) मने एकसो पाडाओनुं बलिदान आप ? ।। ६५ ।। तमूचे विक्रमो याचनलुलायान्कि न लजसे । जज्ञेऽङ्गं मुनिदिष्टेन सज धर्मोषधेन मे ॥ ६६ ॥ ___ अन्वयः-तं विक्रमः ऊचे, लुलायान याचन् किं न लज्जसे ? मे अंग मुनि दिष्टेन धर्म औषधेन सज जज्ञे. ॥६६॥ अर्थः-(त्यारे) सेने ते विक्रमकुमारे कयु के, (हे यक्ष !) पाडाओनी मागणी करतां शुं तुं शरमातो नथी? माशारीर तो मुनिराजे उपदेशेला धर्मरूपी औषधथी सार थयुं हे. ॥ ६६ ॥ धर्माख्यमौषधं दृष्टप्रत्ययं कष्टतोऽर्जितम् । जीवव्यापादपापाब्धी यक्ष कः क्षिपति प्रधीः ॥ ६७ ॥ अन्वयः-(हे) यक्ष ! इष्ट प्रत्यय, कष्टतः अजितं धर्म आख्ध औषधं कः प्रधीः जीव व्यापाद पाप अब्धौ लिपति ? ॥ ६७ ।। ___ अर्थ:-हे यक्ष! जेनी खातरी प्रत्यक्ष जोयेली छे, तथा जे महाकष्टे मळेलुं छे, एवं धर्मनामर्नु अपध कयो मुचुदि माणस ४ा जीवहिंसारूपी पापना महासागरमां फेंकी दे? ॥ ६७ ॥ RECESSAROKAR For Private And Personal use only
SR No.020895
Book TitleVikrambhup Charitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVardhamansuri
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1929
Total Pages50
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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