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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ୫୪ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विद्यांकुर दरख्तों से आदमियों के बड़े काम निकलते हैं। किसी के फल खाते हैं किसी के पत्ते काम में लाते हैं | जो बड़े और मोटे होते हैं। उन्हें आरों से चीर चीर कर कड़ी तर निकालते हैं । उन्हीं से घर गाड़ी छकड़े नाव जहाज पुल मेज़ कुरसी कलमदान संदूक सेकड़ों चीजें बनती हैं। लकड़ियां इस देस में साल यानी साख को मज़बूती में और शीशम की देखने में बहुत अच्छी होती है ॥ हिमालय के पहाड़ों में देवदार शमशाद और अखरोट की लकड़ियां अच्छी गिनी जाती है। पूरब और दक्खन में कहीं कहीं सुन्दरी और सागवान की बहुत बढ़िया समझी जाती हैं | लेकिन जब पेड़ हज़ारों क़िसम के होते हैं तो लकड़ियां भी हज़ारों किस्म की समभो । जहां बहुत से पेड़ आप से आप उग आते हैं उसे जंगल और जहां आदमी सेब नाशपाती बिही श्रमद नारंगी केले संतरे नींबू आम अंजीर शफ्तालू लीची लुकाट अनार आलूचा आलुबुखारा खिरनी फालसे जामन चकोतरे बैर आमला कठल बढ़ल कैय बेल कमरख नारियल लगाते है उसे बाग़ कहते हैं । जिस तरह आदमी के बटन का बचाव चमड़े से होता है उसी तरह पेड़ का उसकी छाल से होता है । इसी लिये पेड़ की काल की कभी न छेड़ना चाहिये छाल बिगड़ने से पेड़ सूख जाता है । आकरज अंडज जरायुज और उद्भिज से आकरज में यह बड़ा फ़र्क है कि वह तो पैदा होती बढ़ती और फिर उमर पाकर मर जाती हैं। और सर्दी गर्मी के सबब जुदा वृदा देशों में जुदा For Private and Personal Use Only
SR No.020894
Book TitleVidyankur
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaja Shivprasad
PublisherRaja Shivprasad
Publication Year1886
Total Pages89
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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