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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पहिला हिस्सा ४५ जदा तरह की होती हैं । और यह निरी बैजान और कभी घटती बढ़ती और मरती नहीं हैं। सब जगह सदा एक सी बनी रहती हैं। __ पत्थर लाहा खड़िया पत्थर का कोयला नमक वगैरः सव आकरज यानी धात को किसमें हैं । खान से निकालती हैं। जिस को लोग मिट्टो कहते हैं अंडज जरायुज और उद्विज के गलने सड़ने सूखने और जलने से बन गयी है। और दिन दिन बनती चली जाती है । इस ज़मीन में ऊपर तले इन आकरज के परत ऐसे जमे हुए हैं ।कि जेसे पयाज़ पर छिलके जमे रहते हैं । ___ चांदो सोना तांबा लोहा रांगा जस्ता वगैरः धात जव खान से निकलती हैं। पत्थर और मिट्टी के साथ मिलो रहती हैं। जव उन्हें पीस कर पानी में डाल देते हैं। धात भारी होने के सबब नीचे बैठ जाती है और मैलजापानी पर तिर आता है पानी के साथ बाहर निकाल कर फेंक देते हैं । फिर उस घात को आग पर गला कर काम में लाते हैं । या जिस कच्ची घात में खान से निकलने पर पत्थर के कोयले वगेर: का मैल रहे पहले ही उसको माग में जलाकर साफ़ कर लेते हैं ॥गोधात कुल आकरज को कह सकते हैं। लेकिन अक्सर चांदी सोना तांबा लोहा रांगा जस्ता सीसा और पारा इन्ही आठ के लिये बोलते हैं ॥ कोई घात थोड़ी ही आंच से और कोई बड़ी कड़ी आंच से गलती है। और कोई हथौड़े की चोट सहती और बढ़ती और कोई चर चर है। जाती है । प्लाटिनम के सिवाय सेना सब से भारी होता है। और सब से बढ़कर महंगा भी मिलता है। उसी से काई सिको को अशरफ़ियां और तरह तरह के गहने बनते हे । बजे For Private and Personal Use Only
SR No.020894
Book TitleVidyankur
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaja Shivprasad
PublisherRaja Shivprasad
Publication Year1886
Total Pages89
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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