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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विचारपोची वेदमें 'सहते' धातुके दो अर्थ हैं : (१) सहना और (२) जीतना । जो सहता है, वही जीतता है। ५५५ नम्रता याने लचीलापन । लचीलेपनमें तनावकी शक्ति है, जीतनेकी कला है और शौर्यकी पराकाष्ठा है। ज्ञानकी चार भूमिकाएं : (१) ज्ञान, (२) व्यवसाय, समाधि, (४) प्रज्ञा। ५५७ यज्ञके कारण मुख्यतः दैविक (याने प्राकृतिक) शक्तियोंका संतुलन रहता है । दानसे सामाजिक और तपसे मानसिक शक्तियोंका संतुलन रहता है। ५५८ देवी उषा, तू सात्त्विकता-मूर्ति है। रजोगुणी दिन और तमोगुणी रातकी कैंचीमें फंसे हुए मनका छुटकारा तेरे सिवा कौन करेगा? सफलतासे नम्रता और असफलतासे उत्साह, यह सफलता और असफलताका कर्मयोगान्तर्गत विनियोग है। ५६० 'प्रियं ब्रह्म'-ईश्वर प्रेममय है—यह श्रुतिवचन है । भक्तिमार्गका बीजमंत्र यही है। 'सातत्य' कर्मयोगका कवच है। गीताके आठवें अध्यायका 'सातत्य' ही सार है, इसलिए मैं उस अध्यायको 'सातत्ययोग' नाम देता हूं। For Private and Personal Use Only
SR No.020891
Book TitleVichar Pothi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinoba, Kundar B Diwan
PublisherSasta Sahitya Mandal
Publication Year1961
Total Pages107
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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