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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ३८ www.kobatirth.org विचारपोथी Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २३५ "आत्मा कैसे सिद्ध होता है ?" तेरे इस प्रश्नसे सिद्ध होता है । मेरा यह उत्तर यदि तुझे जंचे तो उस जंचने से सिद्ध होता है । अगर न जंचे तो उस न जंचनेसे सिद्ध होता है | २३६ राजर्षि याने राजकारण परमार्थमय बनानेवाला । राजकारण, शब्द जीवनका उपलक्षण समझना चाहिए । २३७ सात प्रमाण : (१) कालात्मा, (२) स्व-बुद्धि, (३) प्रक्षिपुरुष, (४) सर्यनारायण, (५) शब्दब्रह्म, (६) सत्यधर्म, (७) परमेश्वर । इसका स्पष्टार्थ : (१) यह भूलना नहीं चाहिए कि काल अनन्त है । (२) जो प्रपनी बुद्धि कहे, उसके अनुसार करें । (३) जबतक प्रत्यक्ष कृति में परिणत न हो जाय, तबतक प्रयत्न नहीं छोड़ना चाहिए । (४) मन खुला करें । (५) संतोंके वचन रहें । (६) सत्यके आचरणका प्रयत्न करें । (७) ईश्वरकी करुणा की याचना करें । २३८ सत्संगति मेरी सारी साधनाका मूल है । यदि तत्त्वनिष्ठा विरुद्ध सत्संगति ऐसा प्रश्न उपस्थित हो जाय - जो अशक्य हैतो तत्त्वनिष्ठा छोड़कर भी सत्संगति स्वीकार करनेकी ओर मनका झुकाव रहें, इतनी सत्संगतिके विषय में आसक्ति मालूम होती है। For Private and Personal Use Only
SR No.020891
Book TitleVichar Pothi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinoba, Kundar B Diwan
PublisherSasta Sahitya Mandal
Publication Year1961
Total Pages107
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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