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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २६ विचारपोथी को हुआ होगा, पर उनमेंसे केवल 'अहल्याशिला' का हो उद्धार हुआ । उसी तरह अहल्याको भी असंख्य लोगोंके पांव लगे होंगे, पर रामके ही पादस्पर्शसे वह जागृत हुई। हम सब, सन्तोंके मार्ग में पत्थर होकर पड़ें; फिर अहल्या-राम-न्यायसे जिसका जब उद्धार होना होगा, तब होगा। शिक्षण-शास्त्र 'अहल्या-राम-न्याय' रट ले ; उससे अहंकार नष्ट होकर उसकी दृष्टि छन जायगी। - प्रात्म-संतोष और अल्प-संतोषमें अन्तर है। पहली प्राध्यात्मिक वस्तु है, दूसरी व्यावहारिक है । वह भली या बुरी भी हो सकती है। यदि भली होगी तो प्राध्यात्मिकताकी पोषक होगी। ईश्वर सच्चा है, धर्म सच्चा है, संत सच्चे हैं ; क्योंकि सत्य सच्चा है। वही ईश्वर, वही धर्म और वही सन्तोंका स्वरूप है। १४८ असत्यसे सत्यकी ओर, अन्धकारसे प्रकाशकी ओर, मृत्युसे अमृतकी ओर--यह साधक का उत्तरायण है। १४६ श्रुति ब्रह्म ही बतलाती है और श्रुति ही ब्रह्म बतलाती है - ऐसा श्रुतिके विषयमें मेरा दोहरा विश्वास है। १५० हम साधनाकी चिन्ता करें, सिद्धिकी चिन्ता करनेमें साधना समर्थ है ; अथवा इसीका मतलब, ईश्वर समर्थ है । विरक्तोंकी कठोरतामें जो प्रेम देखता है, और आसक्तोंके प्रममें जो कठोरता देखता है, वही देखता है। For Private and Personal Use Only
SR No.020891
Book TitleVichar Pothi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinoba, Kundar B Diwan
PublisherSasta Sahitya Mandal
Publication Year1961
Total Pages107
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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