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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विचारपोथी कछुवेके समान, कर्मयोगमें शान्त लेकिन निश्चित कदम भरने चाहिए। .. कछुवेके समान मजबूत पीठ करके दुनियाके आघात सहने चाहिए। कछुवेके समान विषयों से इन्द्रियोंको खींच लेना चाहिए। कछुवेके समान दृष्टि प्रेम-भरी हो। जिनको लोक-संग्रह करनेका उत्साह होता है, उनमें योग्यता नहीं होती और जिनमें योग्यता होती है, उन्हें हविस नहीं होती । लोक-संग्रहके इस पेंच से भगवान् ही छुड़ायें ! .. १३६ सात्त्विक आहार में भी जो स्वाद उत्पन्न होता है, वह हिंसा १४० वेद जिसे प्रोम् कहते हैं, वह संतोंका राम है। 'राम-कृष्ण-हरि' ये उसीकी तीन मात्राएं समझी जायं ! १४१ जिसका 'भूत-मात्रमें हरि' का सूत्र छूटा, उसका भगवान् गुम गया। १४२ स्मर्तव्यकी विस्मृति मानसिक आलसका लक्षण है। स्वधर्मके प्रति प्रेम, परधर्मके प्रति आदर और अधर्मके प्रति उपेक्षा मिलकर धर्म। १४४ रामके चरणोंका स्पर्श अयोध्यासे लंकातक असंख्य पत्थरों For Private and Personal Use Only
SR No.020891
Book TitleVichar Pothi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinoba, Kundar B Diwan
PublisherSasta Sahitya Mandal
Publication Year1961
Total Pages107
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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