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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १७ "वधिबंध्धिमतामस्मि" इस गीता वाक्यसें सो जानना निर्विकल्प होना तिसका नाम एकाग्रता है देहाभिमानका नाम जन्मजानना और ज्ञानसे मरण जानना। ६॥ यक्ष पूछता भया-ब्रह्मज्ञान नहीं होता तिसका क्या कारण है तथा ज्ञानका कौन कारणहै जन्मकी प्राप्तिभी किस कारणसें होतीहै तिलको सुनावो ॥ राजकुमार उत्तर कहताहै हे यक्षराज विवेकके अभावसे ज्ञानको प्राप्ति नहीं होती और मुमु. क्षुता आत्मज्ञान प्राप्तिमे कारण जाननी में कर्ता हूं एसे अभिमानसें जन्मकी प्राप्ति होताहै ॥ ७॥ पुनः यक्षका प्रश्नः-विवेकाभाव सो क्या है तथा में कर्ता हूं तिसका अर्थ क्या है अरु आत्माका अर्थ कहो ॥ राजपुत्रका प्रत्युत्तर-हे यक्षराज ॥ देही देहको भिन्नभिन्न करके न जानना तिसका नाम विवेकाभाव है कर्तृत्वज्ञानजन्य जे दृढवासना तिसका नाम मै कापणेका अर्थ स्पष्ट जानना और “तत्वमसि" श्रुतिसें आत्माका ब्रह्मसच्चिदानंदही-स्वरूप जानना ॥ यही आत्माका अर्थ है ॥ ८॥ यक्षका प्रश्रः-विवेक कैसे उत्पन्न होता है और अविवेकके नाशका कौन कारण है तित कारणकाभीकवन कारण है तिन सर्वका उत्तर कहो। ३ For Private and Personal Use Only
SR No.020885
Book TitleVedant Prakaranam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVigyananand Pandit
PublisherSarasvati Chapkhanu
Publication Year1837
Total Pages268
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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