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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५४ ॥ पारिभाषिकः । होसकती क्योंकि एकाक्कति सप्तमीविभक्ति का चरितार्थ है और षष्ठी के होने से भिन्नाथं भी सम्भव होनावे ॥ १०५ ॥ (विव्याध)इत्यादि प्रयोगांमें परत्व से (हलादिःशेषः)इस सूत्रसे अभ्यासके यकार का लोप होनावे तो वकारको संप्रसारण प्राप्त होताहै इसलिये यह परिभाषाहै । १०६-संप्रसारणं संप्रसारणाश्रयं च कार्य बलीयो भवति अ०१।१।१७॥ जो संप्रसारण और संप्रसारण के आश्रय कार्य है वे दोनों बलवान होते हैं इस से ( हलादिः शेषः ) सूत्र से प्राप्त परलोप को भी बाध के प्रथम यकार को संप्रसारण होगया तो फिर (विव्याध ) आदि प्रयोग बन गये। तथा ( जुहवतः, जुहुवुः) यहां संप्रसारण और वा धातु के आकार का अजादि आईधातक के परे लोप भी प्राप्त है परत्व से लोप होना चाहिये बलवान होने से संप्रसारण हो जाता है और संप्रसारण हुये पीछे भी आकारलोप तथा संप्रसारणाश्रय पूर्वरूप भी प्राप्त है परत्व से आकारलोप होना चाहिये बलवान् होने से संप्रसारणाश्रय पूर्वरूप हो जाता है । इत्यादि अनेक प्रयोजन हैं । १०६ । जब शुक्ल नील आदि गुणवाचकशब्द अपने केवल गुणवाचकपन अर्थात् स्वतन्त्र अर्थ में पल्लिङ्गादि किसी विशेष निङ्ग वा एकत्वादि वचन का प्राश्रय करने से नहीं प्रतीत होते पुनः जब दून का द्रव्य के साथ समानाधिकरण हो तब कौन लिङ्ग वचन इन में होना चाहिये इसलिये यह परिभाषा है। १०७-गुणवचनानां हि शब्दानामाश्रयतो लिङ्गवचनानि भवन्ति ॥ ०१ ।२ । ६४ ॥ ... गुणवाची शब्द जिस द्रव्य के आश्रित ही उस द्रव्यवाचकशब्द के जो लिङ्गवचन हो वे ही गुणवाचक शब्द के भी हो जायें जैसे । शक्ल वस्त्रम् । शुक्ला शाटौं । शुक्लः बना शक्ती कंबली । शलाः कम्बलाः । इत्यादि इसी प्रकार सर्वत्र जानो।१०७॥ जैसे । कष्टं श्रितः, कष्टश्रितः । इत्यादि में समास हो जाता है वैसे । महत कष्टं श्रितः । यहां भी समास होना चाहिये इसलिये यह परिभाषा है। १०८-सापेक्षमसमर्थ भवति ॥ अ०२।१।१॥ जो पद विशेष्यविशेषणभाव से हितोय पद के साथ सम्बन्ध रखता हो वह मापिक्ष होने से समास होने में असमर्थ कहाता है उस का समास नहीं हो सकता। इस कारण महत् शब्द विशेषण के साथ कष्टसापेक्ष होने से पर के साथ समास को प्राप्त नहीं होता तथा (भार्या राजः पुरुषो देवदत्तस्य ) यहां For Private And Personal Use Only
SR No.020882
Book TitleVedang Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDayanand Sarasvati Swami
PublisherDayanand Sarasvati Swami
Publication Year1892
Total Pages326
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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