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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ पारिभाषिकः । ५३ लाघव गौरव का विचार सर्वत्र रहता है कि । जहां तक हो थोड़ा वचन पढ़के बहुत अर्थ निकालना परन्तु ॥ १०२ - पर्यायशब्दानां लाघवगौरवचर्चा नाद्रियते ॥ पर्याय शब्दों में थोड़े बहुत होने का विचार नहीं करते कि जहां थोड़े वचन से काम चल सकता है तो उस का पर्याय अधिक अक्षर का शब्द न पढ़ना जैसे ( अन्यतरस्याम्, विभाषा, वा उभयथा ) इत्यादि एकार्थ शब्दों में किसी को पढ़ दिया यह नियम नहीं कि इतना अधिक क्यों पढ़ा इत्यादि ॥ १०२ ॥ 1. जो ज्ञापकरूप परिभाषाओं से कार्य सिद्ध होते हैं वहां सर्वत्र ज्ञापक सिद्ध की प्रवृत्ति नहीं होती इसलिये यह परिभाषा है | १०३ - ज्ञापक सिद्धं न सर्वत्र ॥ जैसे अर्थवान् और अनर्थक के ग्रहण में ज्ञापक सिद्ध परिभाषा से अर्थवान् को कार्य होता है सेा अनन्त को कहा कार्य कनिन् प्रत्यय के परे सार्थक अन् को और मन् प्रत्यय के निरर्थक अन् को भी होते हैं ॥ १०२ ॥ त्रिपादी में हुआ कार्य सपादसप्ताऽध्यायों में असिड माना जाता है सेा (द्रोग्धा, द्रोग्धा, द्रोटा, द्रोढा) यहां विपादिस्थ ( वा द्रहमुह ० ) सूत्र से हकार को घ और ढ आदेश होते हैं सेा जो द्दित्व करने में उस घ को असि मानें तो द्दित्व के एकभाग में और द्वितीय भाग में ढ आदेश रहना चाहिये इसलिये यह परिभाषा है | घ १०४ - पूर्वत्रासिद्धी यमद्विर्वचने ॥ ० ८ । १ । १ ॥ त्रिपाद का कार्य द्दित्व करने में असिद्ध न माना जावे इस से ( द्रोग्धा द्रोग्धा) आदि में ढत्व नहीं होता तथा (नुनं नुन्नम्, नुतं नुत्तम्) वहां भी द्दित्व के एक भाग में न और एक में तकार प्राप्त है सेा नहो इत्यादि ॥ १०४ ॥ जैसे (गोषु स्वाम्यश्वेषु च ) यहां एक स्वामी शब्द के योग में दोनों भिन्नाकृति शब्दों में एaraति सप्तमी विभक्ति होती है वैसे गो शब्द में सप्तमी और अख में षष्ठी विभक्ति क्यों नहीं होती इसलिये यह परिभाषा है । १०५ - एकस्या प्राकृतेश्वरितः प्रयोगो द्वितीयस्यास्तृतीयस्याश्च न भवति ॥ अ० १ । ३ । ३९ ॥ जहाँ एक प्राकृति का प्रयोग चरितार्थ होता है वहां द्वितीय वा तृतीय अन्यार्थ सम्भव कारक का प्रयोग नहीं होता इस से वहां अश्व शब्द में षष्ठी नहीं For Private And Personal Use Only
SR No.020882
Book TitleVedang Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDayanand Sarasvati Swami
PublisherDayanand Sarasvati Swami
Publication Year1892
Total Pages326
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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