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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ पारिभाषिकः ॥ अब धाव धिकार में सर्वत्र वासरूपविधि के मानने से (हसितं, हसनं वा छात्रस्य शोभनम् ) यहाँ (ता) और ल्युट के विषय में बञ् (इकति भोक्तुम् ) यहां (लिङ, लोट) और (ईषत्पानः सोमो भवता) यहां (खल ) असरूप उत्सर्ग होने से प्राप्त हैं इस सन्देह की निवृत्ति के लिये यह परिभाषा है । ५९-तल्युटतुमुन्खलर्थेषुवाऽसरूपविधिनास्ति ।०३।१।९४॥ त, ल्यूट, तुमन, और खलर्थप्र ययों के विषय में असरूप उसग प्रत्यय अपवादपक्ष में नहीं होते इस से (हसितम्, 'हसनम् ) आदि प्रयोगों के विषय में घा आदि उसमें प्रत्यय नहीं होते ( अहे सत्य वचच) इस सूत्र में कृत्य और च प्रत्यय नहीं कहते तो अहं अर्थ में कहे हुए लिङ्ग के साथ असारूप्य होने से अहं अर्थ में कत्य और तृच हो ही जाते फिर कृत्य और ढच् ग्रहण व्यर्थ होकर यह जनाले हैं कि ( वासरूपोऽस्त्रियाम् ) यह परिभाषा अनित्य है ।। ५८ ॥ ( हगस्वतोलङच) इस सूत्र में लङ् ग्रहण नहीं करते तो भूतानद्यतनपरो. क्षकाल में विहित (लिट ) के साथ असरूप ( लङ] का समावेश हो ही जाता फिर लङ व्यर्थ होकर इस परिभाषा का ज्ञापक होता है । ६०-लादेशेष वाऽसरूपविधिन भवति ॥१० ३।१।९४ ॥ __ लकारार्य विधान में वाऽशरूपविधि नहीं होती। इस से सङ् लकार का ग्रहण सार्थक हुा । और [म्स टःशगानचा०] यहां विकल्पको अनुहति इसलिये करते हैं कि जिस से तिङ का भी पक्ष में समावेश हो जावे जो वासरु प. विधि होजाती तो तिङ समावेश के लिये विकल्प नहीं लाने पड़ता इत्यादि अनेक प्रयोजन इस परिभाषा के समझने चाहिये। ६० । ___ अब तस्मिन्निति,तम्मादित्युत्तरस्य इन सूत्रों से सप्तमीनिर्दिष्ट कार्य अव्यवहित पूर्व के और पंचमीनिर्दिष्ट उत्तर के होता है सा[बको यणच ] यहां सप्तमीनिर्दिष्ट पूर्वका और ठद्यन्तरुपसर्गभ्योऽपईत होपम् । यहां पंचमीनिर्दिष्ट उत्तर को होता है। परन्तु जहां पंचमी और सप्तमी दोन विभक्तियों का निर्देश हो वहां किसको कार्य होना चाहिये इस संदेह को निवृत्ति के लिये यह परिभाषाहै । ६१-उभयनिर्देशे विप्रतिषेधात् पंचमीनिर्देशः॥प्र० ११ ११६६॥ जहां सप्तमौ पंचमी दोनों विभक्तियों से निर्देश किया है वहां [तस्मिन् नति. | तस्मादित्य.] इन दोनों सूत्रों में पर विप्रतिषेध मान के पंचमौनिर्दिष्ट का कार्य For Private And Personal Use Only
SR No.020882
Book TitleVedang Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDayanand Sarasvati Swami
PublisherDayanand Sarasvati Swami
Publication Year1892
Total Pages326
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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