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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अ "पारिभाषिकः । असवयं अच् हो ही नहीं सकता फिर उस असवर्ण गुण वृद्धि किये अच के परे (व्यङ्, उवङ् ) कहने से निश्चित ज्ञात हुआ कि ( वर्ण कार्य का बाधक अंगकार्य होता है ) यही असवर्ण अंच के परे (इयडन, उवङ ) का विधान स परिभाषा के होने में ज्ञापक है ॥ ४ ॥ यह बात प्रथम लिख चुके है कि अन्तरङ्ग से भी अपवाद बलवान होता है ( जुसि च ) इस सूत्र से जो गुणविधान है सो (कडिति च) आदि निषेधप्रकरण का अपवाद है क्योंकि ( झि ) के ङित होने से उसके स्थान में जुस भी डित ही आदेश होता है सो जैसे ( अविभयुः, अबिभरुः ) इत्यादि में निषेध का बाध जुस में गुण होता है वैसे ही [ चिमुवुः,सुनुयुः ] यहाँ [थासुट ] के आश्रय से प्राप्त गुण निषध का भी बाधक होजावे तो (चिनुयुः, सुनुयुः ) आदि प्रयोग में गुण होना चाहिये इसलिये यह परिभाषा है । ५०-येन नाप्राप्ते यो विधिरारभ्यते स तस्य बाधको भवति ॥ अ० १।१ । ६ ॥ जिस कार्य की प्राप्ति में अपवाद काप्रारम्भ किया जाता है वह अपवाद उसो मायका बाधक होता है और जिस को प्राप्तिअप्राप्ति में सर्वथा अपवाद काप्रारम्भ है उसका बाधक नहीं होता इस से यह पाया कि ( चिनुयुः, सुमुवः ) यहां दोडिन्त हैं एक सार्वधातुक जुस् प्रत्यय का और दूसरा यासुट का सो सार्वधातुकप्रत्ययाथित जो डिस्व है उसी को मान के प्राप्त गुण का निषेध है उस निषध की प्राप्ति मेंजस के परे गुण कहा है और यासुट के डिवनिमित्तप्राप्त निषेध के होने वा न होने में उभयत्र जुस के परे गुण कहा है क्योंकि (अविभयुः ) आदि में यासट के बिना केवल सार्वधातुक के आश्रयगुण का निषेध प्राप्त है इस लिये ( चिनुयः ) आदि में गुण नहीं होता । ल्यादि इस परिभाषा के अनेक प्रयोजन हैं॥५॥ अब इस पूक्ति परिभाषा के विषय में यह विशेष विचार है कि (नासिको. दरीष्ठ अन्धादन्तकर्णशृङ्गान) यह सूत्र अगले (न क्रोडादिबतचः, सहनत्र.) इन दो सूत्रों का अपवाद है और दोनों को प्राप्ति में इस का प्रारम्भ भी है पूर्व परिभाषा के अनुकूल माना जावे तो सह, नञ् और विद्यमानपूर्वक शब्दों से प्राप्त निषेध का बाधक डोष प्रत्यय (सनासिका, अनासिका, विद्यमाननासिका। आदि में भी ( डोष ) प्रत्यय होना चाहिये तो ये प्रयोग नहीं बनसके इसलिये यह परिभाषा है। For Private And Personal Use Only
SR No.020882
Book TitleVedang Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDayanand Sarasvati Swami
PublisherDayanand Sarasvati Swami
Publication Year1892
Total Pages326
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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