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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org भूमिका ॥ (सलिये जैसा अपना इष्ट अर्थ हो वैसे स्वर और वर्ण का नियमपूर्वक हो ण करना चाहिये । जब मनुष्य को उदात्तादि खरों का ठीक २ बोध हो है तब स्वर लगे हुए लौकिक शब्दों के नियत अर्थों को शीघ्र जान लेता है केसी एक शब्द को आद्युदात्तस्वरयुक्त देखा तो जान लेगा कि अमुक अर्थ कजित् वा नित प्रत्यय हुआ है इसलिये इस का यही अर्थ होना चाहिये free अर्थ नहीं हो सकता ऐसा निश्चय स्वरन पुरुष को हो जाता है । कर्त्ता । स कर्त्ता । इन दो वाक्यों में दो प्रकार के स्वर होनेसे दाही प्रकार होते हैं पहिले वाक्य में लुट् लकार की क्रिया है । अर्थ- वह अगले दिन · और दूसरे में कदन्त टच प्रत्ययान्त शब्द है । अर्थ- वह करने वाला पुरुष सौ प्रकार इत्यादि एक प्रकार के शब्दों का अर्थभेद स्वरव्यवस्था के जानहो निकलता है । जो स्वरव्यवस्था का बोध न हो तो श्रर्थों का लौट पौट वार हो जाने से बड़ा अन्धेर फैल नावे | इसी प्रकार समासे के पृथक २ सखरों को जान के उन २ समासों के नियत अर्थों को शीघ्र जान लेता र्थात् उदात्तादि स्वरज्ञान के विना अर्थ को भ्रान्ति नहीं छूटती । और उदास्वरबोध के विना वेदमंत्रों का मान और उच्चारण भी यथार्थ नहीं हो क्योंकि षड्जादि स्वर गानविद्या में उपयोगी होते हैं वे उदात्तादि के नहीं हो सकते । जैसेः 1 चौ निषादगांधारौ नीचावृषभधैवतौ । शेषास्तु स्वरिता ज्ञे: षड्जमध्यमपंचमाः ॥ १ ॥ स्थान महाराणा जी का उदयपुर संवत् १९३८ पाखि० व० १३ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir यह वचन याज्ञवल्क्यशिक्षा का है षड्जादिकों में निषाद और गांधार तो रात के लक्षण से ऋषभ और धैवत अनुदान्त के लक्षण से तथा षड्ज मध्यम र पंचम ये तीनों स्वरितस्वर से गाये जाते हैं । उदात्तादि के विना वेदमत्रों का धारण भी प्रिय नहीं लगता और जब उदात्तादि के सहित उच्चारण किया ता है तब अतिप्रिय मनोहर उच्चारण होता है । इस ग्रन्थ में स्वरव्याख्या से को है परन्तु जो मुख्य २ स्वरविषय के पाणिनीय अष्टाध्यायीस्थ सूत्र हैं इस में लिख दिये हैं और सब अष्टाध्यायी को वृत्ति में लिखे जायंगे ॥ इति भूमिका ॥ (स्वामी) दयानन्द सरस्वती For Private And Personal Use Only
SR No.020882
Book TitleVedang Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDayanand Sarasvati Swami
PublisherDayanand Sarasvati Swami
Publication Year1892
Total Pages326
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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