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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatit.org www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अथ भूमिका॥ इस सौवर ग्रन्थ के बनाने का मुख्य प्रयोजन यही है कि जिस से सब मनुष्ये उदात्तादि खरी की व्यवस्था का बोध यथार्थ हो जावे। जब तक उदातादि को ठीक २ नहीं जानते तब तक लौकिक वैदिक वाक्यों वा छन्दों का स्पष्ट उच्चारण मान और ठीक २ अर्थ भी नहीं जान सकते। और उच्चारण आ यथार्थ होने के बिना लौकिक वैदिक शब्दों से यथार्थ सुखलाभ भी किर्स नहीं होता । देखो इस विषय में प्रमाण । दुष्टः शब्दः स्वरतो वर्णतो वा मिथ्याप्रयुक्तो न तमर्थम स वाग्वजो यजमानं हिनस्ति यथेन्द्रशत्रुः स्वरतोऽपराधात् ॥१ जो शब्द अकारादि वर्गों के स्थान प्रयत्न पूर्वक उच्चारण नियम और र तादि स्वरों के नियम से विरुद्ध बोला जाताहै उस को मिथ्याप्रयुक्त कहते हैं। कि जिस अर्थ को जताने के लिये उसका प्रयोग किया जाता है उस अर्थ को शब्द नहीं कहता किन्तु उस से विरुद्ध अर्थान्तर का कहता है । इसलिये उच्च किया हुआ वहशब्द अभीष्ट अभिप्राय को नष्ट करनेसे वज्र के तुल्य वाणीरूप कर यजमान अर्थात् शब्दार्थसम्बन्ध को सङ्गति करने वाले पुरुष हो को दुःख देता है। अर्थात् प्रयोता के अभिप्राय को बिगाड़ देनाही उस को दुःख ६ है । जैसे ( इन्द्रशत्रुः ) शब्द स्वर के विरोध सेहो विरुद्धार्थ हो जाता है। बुट शत्रु तत्पुरुष समास में तो अन्तोदात्त होता है इन्द्र अर्थात् सूर्य का शत्र मेघ बरे कर विजयी हो।(इन्द्र शत्रुः) यहां बहुव्रीहि समासमें पूर्वपद प्रकतिखरसे आद्यदा स्वर होता है । और शत्र शब्द का अर्थ यही है कि शान्त करने वा काटनेवाला प्रमाण निरुत का-इन्द्रोस्य शमयिता वा शातयिता वा से तत्पुरुष समास में इन्द्र नाम सूर्यका शत्रु शान्त करने वाला मेघ आया और बहुव्रीहि समासमें मृ जिसका शत्र शान्त करने वा काटने वाला है ऐसा अन्य पदार्थ मेघ आया। पुरुष सूर्य का शान्त करने वाला मेघ है इस अभिप्राय से पून्द्रशत्र शब्द उच्चारण किया चाहताहै तो उसको अन्तोदात्त उच्चारण करना चाहिये परन्तु . वह आद्युदात्त उच्चारण कर देवे उसका अभिप्राय नष्ट हो जाये क्योंकि आद्यदात्त उच्चारण से बानीहि समास में मेघ का शान्त करने वा काटने वाला सूर्य ठहरै - For Private And Personal Use Only
SR No.020882
Book TitleVedang Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDayanand Sarasvati Swami
PublisherDayanand Sarasvati Swami
Publication Year1892
Total Pages326
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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