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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir । पारिभाषिकः । Mai c २०-भवत्युकारेण भाव्यमानेन सवर्णानां ग्रहणम्।। अ०६ । १ । १८५॥ भाव्यमान उकार से सवर्णी का ग्रहण होता है इस से पूर्वात उकार में तपर सार्थक हुआ और अन्यत्र फल यह है कि अदसेोऽसेर्दादुदोमः)यहांभाव्यमान हस्त्र उकार सवर्णी का ग्राही होता है तभी ( अमूभ्याम् ) आदि में दीर्घ अकारादेश हुआ ॥२०॥ ( गवहितं,गोहितम् ) यहां समास में चतुर्येकवचन प्रत्यय का लक् किये पोछे (प्रत्ययलोपे०) सूत्र से प्रत्यय लक्षण कार्य माने ता (गो) शब्द के प्रोकार को अवादेश प्राप्त है इसलिये यह परिभाषा है । kastasia-..-...-. २१--वर्णाश्रये नास्ति प्रत्ययलक्षणम् ॥ वर्ण के आश्रय से जो कार्य कर्तव्य हो तो प्रत्ययलक्षण न हो अर्थात् उस प्रत्यय को मान के वह कार्य न होवे इसलिये अच् को मान के अवादेश नहीं. होता इत्यादि ॥ २१॥ (अतःककमिकस० ) इस सूत्र में कंस शब्द का पाठ व्यर्थ है कोंकि उणादि में कमेः सः) उस सूत्र से कम् धातु का कंस शब्द बना है कम् धातु के सामान्य प्रयोगों के ग्रहण में कंस शब्द का भी ग्रहण होजाता फिर कंस शब्द क्यों पढ़ा इसलिये यह परिभाषा है। २२-उपादयोऽव्युत्पन्नानि प्रातिपदिकानि ॥१० १।१।६१॥ उणादि प्रातिपदिक अव्युत्पन्न अर्थात् उन का सर्वत्र प्रकृति, प्रत्यय, कारक आदि से यौगिक यथार्थ अर्थ नहीं लगता अर्थात् उणादि शब्द बहुधा रूढ़ि होते हैं इसलिये ( अतः ककमिकंस० ) सूत्र में कंस ग्रहण सार्थक है। इसी प्रकार (प्रत्ययस्य लुक्०) इस सूत्र से (परशव्य) शब्द का लुक् कहा हुआ उकार प्रत्यय होने से भी अव्यत्पत्रपक्ष मान के परशु शब्द के उकार का लुक नहीं होता। इत्यादि अनेक प्रयोजन हैं ॥ २२ ॥ ( देवदत्तथिकोर्षति ) इत्यादि प्रयोगों में देवदत्त आदि शब्दों को सन्नन्त के धातुसंज्ञा आदि कार्य प्राप्त हैं सेा को नहीं होते ।जो देवदत्त के सहित सब वाक्य को धातुसंज्ञा होजावे तो ( सुपो धातु०) इस सूत्र से जो देवदत्त के आगे विभक्ति है उस का लुक प्राप्त होवे इसलिये यह परिभाषा है। For Private And Personal Use Only
SR No.020882
Book TitleVedang Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDayanand Sarasvati Swami
PublisherDayanand Sarasvati Swami
Publication Year1892
Total Pages326
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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