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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १२ सौवरः ॥ वा०-२६-ततिशिष्टस्वरबलीयस्त्वञ्च ॥ भा०-सत्येकस्मिन् स्वरे विशिष्टो दितीयःस्वरो बलवान् भवति॥ सतिशिष्ट वह कहाताहै कि एक स्वर के वर्तमान में द्वितीय विशेष विधान किया जावे वही बलवान् रहता है। प्रथम का स्वर निवृत्त हो जाता और पश्चात् वि. हितस्वर प्रधान रहता है। - भा०-तच्चानेकप्रत्ययसमासार्थम् ॥ सतिशिष्ट का प्रयोजन यह है कि अनेक प्रत्यय और अनेक समासों में उत्तरोत्तर खर बलवान होते जावें । जैसे अनेक प्रत्यय । औ प गवः। यहां उपगु शब्द से अण हुआ है उसी का स्वर रहता है। प्रोपगव शब्द से त्व । औपगवत्वमा यहाँ स्वर का बाधक व प्रत्यय का स्वर । औपगवत्वमेव, श्री प ग व त्वकम । यहां त्व प्रत्यय के स्वर का बाधक क प्रत्यय का स्वर रहताहै तथा । पुरूणां राजा, पौर वः । यहां अण प्रत्यय का स्वर प्रकृतिस्वर का बाधक । पौरवस्यापत्यम् । ज । आद्यदात्त पौरविः । तस्य युवापत्य फक । अन्तोदात्त । पौ र वा यणः । पौरवाय. णानां समूह: वुज । आद्यदात्त । पौरंवायणकम । पौरवायणकानां छात्राः । पौर वा य णकीयाः । यहां छ प्रत्यय आधदात्त । पौरवायणकीयः प्रोझमधीयते तेपि, पौर वा य ण कीयाः ।अण का स्वर अन्त में रहता है। इसी प्रकार बहुत कुछ प्रत्ययमाला बन सकती है । अनेक समास । वीरथासौ राजा, बी र रा नः । टच -अन्तोदात्त । वीरराजस्य पुरुषो वोर रा ज पुरुषः । वीरराजपुरुषस्य पुत्रः, वीर राज पुरु ष पुत्रः । वीरराजपुरुषपुत्रः प्रधाना येषां ते, वो र गज पुरु ष पुत्र. प्रधानाः । यहां पूर्वपदप्रकृतिस्वर होता है । इसी प्रकार के इन से बहुत बड़े २ समास हो सकते हैं । और उनके स्वर भो तदनुकूल हो जावें गे ॥ २६ ॥ वा०-२७-विभक्तिस्वरान्नस्वरो बलीयान् ॥ विभक्तिस्वर से नवर बलवान होता है जैसे । न तिस्त्रः, अतिस्त्रः, यहां विभक्तिखर-नस विभति को उदात्त प्राप्त है उसका बाधक नस्वर पूर्वपदप्रकृति. भाव हो जाता है । २७॥ वा०-२८--विभक्तिनिमित्तस्वराञ्च नस्वरो बलीयानिति वक्तव्यम् ॥ विभति जिस का निमित्त है उस को जो स्वर होता है उस को बाध के न . स्वर होना चाहिये । जैसे । अचत्वारः ।अननडाहः । यहां विभक्ति को मानकेजो पाम् पागम होता है उस का बाधक नञ् प्रकृतिस्वर हो जाता है ॥ २८ ॥ - For Private And Personal Use Only
SR No.020882
Book TitleVedang Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDayanand Sarasvati Swami
PublisherDayanand Sarasvati Swami
Publication Year1892
Total Pages326
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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