SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 14
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सौवरः ॥ १५ २४-अनुदात्तौ सुप्पितौ ॥०॥३।१।३॥ जो सुप अर्थात् सु आदि कीस और पित् प्रत्यय हैं वे अनुदात्त हो जैसे । सो म सुतौ। सो मसुतः । यहां सुप् में औ तथा जस् अनुदात्त होके उदात्त से परे स्वरित होगये है। भवति । पचति । इत्यादि। यहाँ शप और तिप पित् प्रत्यय होने से अनुदात्त हुए हैं ॥ २४ ॥ __२५-अनुदात्तं पदमेकवर्जम् ॥ ० ॥ ६ । १ । १५८ ।। स्वरप्रकरण में यह परिभाषासूत्र सर्वत्र प्रवृत्त होता है। जो दो वा अनेक कितने ही पदों का समास होताहै वह भी एक पद कहाता है । स्वरप्रकरण में जिस एक पद में उदात्त वा स्वरित जिस वर्ण को विधान करें उससे पृथक जि. तने वर्ण ही वे सब अनुदात्त हो जावें । इस बात का स्मरण सब स्वरप्रकरण में रखना चाहिये । इस सूत्र का प्रयोजन महाभाष्यकार दिखलाते हैं। का०-प्रागमस्य विकारस्य प्रकृतेः प्रत्ययस्य च । पृथकस्वरनिवृत्त्यर्थमेकवर्ज पदस्वरः ॥ गोलार्थ । पागम, विकार, प्रकृति और प्रत्यय का पृथक स्वर न होने के लिये इस सूत्र का प्रारम्भ किया है । आगम जो टित कित् मित् चिन्ह के साथ अपूर्व उपजन होजाता है । उस का पृथक् स्वर हो नावे । जैसे । चत्वारः । अनडाहः । यहाँ चतुर और अनडुह शब्द को आम आगम हुआ है उसी का पृथक स्वर रहता और प्रकृतिस्वर को निवृत्ति हो जाती है। अर्थात प्रकृति और पागम के दोनों स्वर एक पद में एक साथ नहीं रह सकते । विकार जो किसी वर्ण वा शब्द को आदेश हो जाता है। जैसे। प्रस्थना । दध्ना । अस्थनि । दधनि । यहां अस्थि और दधि शब्द प्रथम आद्युदात्त हैं पथात् तीयादि प्र. नादि विभक्तियों में इन को अनङ आदेश हो के प्रकृति और आदेश के दो स्वर प्राप्त हैं सा नहीं होते किन्सु प्रकृति स्वर को बाध के आदेश का उदात्त स्वर हो जाता है । प्रकति धातु वा प्रातिपदिक जिस से प्रत्यय उत्पन्न होते हैं जैसे । गो पायति । ५ पायति । यहां प्रकृतिस्वर गोपाय धूपाय धातु को अन्तोदात्त और प्रत्ययस्वर आय प्रत्यय को प्राद्युदात्त दो स्वर प्राप्त हैं सो न हो किन्तु प्रत्ययस्वर कोबाध के प्रतिस्वर हो जावे । प्रत्यय जो धातु वा प्रातिपदिक से परे वि. धान किया जाता है जैसे । कर्तव्यम् । ते त्तिरीयः । यहां वधातु और तित्तिरि प्रातिपदिक से तव्य और छ प्रत्यय हुआ है प्रकृति और प्रत्यय के दोनों खर प्राप्त हैं सो न हो किन्तु प्रति वरको बाधके प्रत्यय कापायदात्त स्वर हो आवे२५॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020882
Book TitleVedang Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDayanand Sarasvati Swami
PublisherDayanand Sarasvati Swami
Publication Year1892
Total Pages326
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy