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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१०) वसंतरानशाकुने चतुर्थी वर्गः। प्रावेशिकः स्यात्प्रथमं ततस्तु प्रस्थानशंसी यदि तन्नराणाम् ॥ सुखेन सिद्धिः कथिता प्रवासे व्यत्यासभावानगरपवेशे॥ १२॥ भंगे रणे कर्मणि च प्रवेशे शुक्ग्रहे नष्टविलोकने च ॥ व्याधौ सदुर्गभयादिकेषु शस्तः प्रयाणाद्विपरीतभावः ॥ १३॥ ॥ टीका॥ समीपे तत्कालोत्पनैः शनैः अचिरेण स्तोककालेन सिद्धिः दूरे शनैः प्रजातैः ग्रामादूरभूतैः शकुनैः चिरेण चिरकालेन सिद्धिस्तत्र स्वस्थानसंस्थैरिति स्वयं यस्थानं क्षेत्र तत्र स्थितेलिभिः बलयुक्तैः स्वकाले जातैरिति येषां यः कालः तत्रीद्भूतैःशनैःसम्यग् शोभनं फलं स्यात् ततोन्यैः विपरीतैः असम्यग् अशोभनं फलमिति ॥ ११ ॥ प्रावोश इति ॥ प्रवासे गमने यदि प्रथमं प्रावशिक ग्रामप्रवेशचितशकुनः स्यात् तदुपरि यदि प्रस्थानशंसीति प्रस्थानसमयोचितः शकुनः स्यात्तदा नराणां सर्वत्र सुखेन अनायासेन सिद्धिः कथिता मुनिभिरिति शेषः । नगरप्रवेशे व्यत्यासभावादिति प्रथमं प्रस्थानशंसी ततः प्रावेशिकः स्यात्तदा पूर्ववत्कार्यसिद्धिः कथिता ॥ १२ ॥ भंगे इति ॥ एतेषु कार्यविशेषेषु शकुनानां प्रयाणागमनाद्विपरीतभावः शस्तः।अयं भावः गमने प्रास्थानिकाः विलोक्यंते यदि भवंति प्रावेशिका ॥ भाषा॥ कार्यकी शीघ्रही सिद्धि होय और जो दूर गये पै शकुन होय तो विलंब करके कार्यसिद्धि जाननो अपने स्थानमें स्थित होय बलयुक्त होय समयमें हुये शकुनन करके शोभन फल होय और इनते विपरीत शकुननकरके शुभ फल नहीं होय ॥ ११ ॥ प्रादेशिक इति ॥ गमनमें जो प्रथम प्राम प्रवेशके उचित शकुन होय और फिर दूसरे गमन समयके उचित शकुन होय तो मनुष्यकू मुनिनने श्रमकरे विनाई सब सिद्धि होंय ये कह्यो है और नगरमें प्रवेश होती समयमें विपरीत होय अर्थात् पहले गमन समयके उचित शकुन होय और तापीछे प्रवेश समयके उचित शकुन होय तो पूर्व कीसीनाई विना श्रम करेही कार्यसिद्धी कही है ॥ १२ ॥ भंगे इति ॥ पराजयमें, संग्राममें, अत्यंत क्रूर कर्ममें, प्रवेशमें, और नवीन मंड. पमें, और राजा प्रसन्न होयके द्रव्यदेवे ताके ग्रहण समयमें, और गई वस्तुको दुडनो ता For Private And Personal Use Only
SR No.020879
Book TitleVasantraj Shakunam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasantraj Bhatt, Bhanuchandravijay Gani
PublisherKhemraj Shrikrushnadas Shreshthi Mumbai
Publication Year1828
Total Pages596
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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