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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पल्लीविचारप्रकरणम् । (४१५) पल्लिका दिशति दक्षिणाययोरर्थहानिमशुभं विलोकिता ॥ अध्वगस्य शुभलाभदायिनी वीक्षिता भवति पृष्टवामयोः॥ ॥३१ ॥ उन्नतं समधिरुह्य दक्षिणं वामतोऽवतरति प्रियैपिणी ॥ पल्लिका यदि तदा प्रवासिभिलभ्यते झटिति राज्यमक्षयम् ॥ ३२॥ ॥ टीका ॥ वामः स्यात्प्रवेशकाले च यदि दक्षिणः स्यात्तदा पुंसां मनोरथादप्यधिकानि कायणि अखिलानि समस्तानि तूर्ण शीघ्र सिध्यति ॥ ३० ॥ पल्लीति ॥ पल्लिका दक्षिणाग्रयोः दक्षिणः अनुलोमप्रदेशः अग्रं पुरःप्रदेशः अनयोईवः तयोविलोकितां दृष्टा अर्थहानिमशुभं च दिशति गंतुरिति शेषः । पृष्ठवामयोः वोक्षिता अध्वगस्य शुभलाभदायिनी भवति ॥ ३१ ॥ उन्नतमिति ॥ यदि पल्लिका दक्षिणमुन्नतं समधिरुह्य प्रियैषिणी वामतः वामदिग्विभागे अवतरति तदा प्रवासिभिःझटितिशीनं राज्यमक्षयमविनाशि लभ्यते ॥ ३२ ॥ अस्या वारादि स्पर्शनविचारस्तु ग्रथांतरादेव ज्ञेयः तद्यथा। “अथातः संप्रवक्ष्यामि शृणु शौनक यत्नतः।।पल्लीप्रपतनं चैव सरटस्या धिरोहणम् ॥१॥ प्रतिपद्रोगसंप्राप्तिद्वितीयायां तथैव च ॥ तृतीयायां भवेल्लाभश्चतु• रोग एव च ॥२॥ पंचम्यां चैव षष्ठयां च सप्तम्यां स्याद्धनागमः ॥ अधम्यां ॥ भाषा॥ 'पनमनोरथसू भी अधिक समस्त कार्य शीघ्र सिद्ध होय ।। ३० ॥ पल्लोति ॥ गमनकर्ता 'पल्लो जेमने भागमें वा अग्रभागमें दखै तो अर्थकी हानि और अशुभ करै. जो मार्गीक पीटपोछे वा वामभागमें दी तो शुभ देवै ॥ ३१ ॥ उन्नतमिति ॥ पल्ली गमनकर्ताकू जेमनी दिशामें ऊंची चढती दाखै तो प्रियकरै. वामभागमें नीचे उतरती दीखै तो गमनकरबेवाले पुरुषकं शीघ्रही अक्षय राज्य प्राप्त होय ॥ ३२ ॥ अब पलीके वारके तिथिके अंगके नक्षत्रके लग्नके स्थानके फल और ग्रंथसूं कहेहैं । सूतजी शौनकजीसू कहैं हैं ॥ शौनक ! पल्ली जो छपकली वा छाप या नामसं प्रसिद्ध है. याको पडनो, और शरट जो किरकेंटां ताको चढनो इनको फल हम कहेहैं सो तुम सुनो ॥ १ ॥ पडवामें पल्लीको पतन रोग करै. दूजमें पल्लीको पतन रोग करे. तीजमें पल्लीको पतन लाभ करै. चौथमें पल्लीको पतन गंग करै ॥ २ ॥ पंचमीमें, छठमें, सप्तमीमें पल्लीको पतन धनको आगमन करै. अष्टमी For Private And Personal Use Only
SR No.020879
Book TitleVasantraj Shakunam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasantraj Bhatt, Bhanuchandravijay Gani
PublisherKhemraj Shrikrushnadas Shreshthi Mumbai
Publication Year1828
Total Pages596
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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