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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ( १२१४ ) वसंतराज शाकुने- सप्तदशो वर्गः । विप्रागमायाभ्यवहारकाले प्रनष्टलाभाय च पूर्वयामे ॥ मध्ये च भूपस्मरणाय रात्रे रुल्काप्रपाताय तृतीययामे ॥ २७ ॥ ब्रह्मप्रदेश प्रहरे चतुर्थे शुभाय शब्दो गृहगोधिकायाः ॥ शुभावा शांतदिशि प्रशांता दीप्ता प्रदीप्ते शुभदा न पल्ली ॥ २८ ॥ समागमात्संगममाह पल्ली युद्धेन युद्धं विरहं वियोगात् ॥ यच्छत्यवश्यं सुरतप्रसक्ता पुंसां वरस्त्रीरतकेलिलाभम् ॥ २९ ॥ वामः प्रयाणे यदि कुड्य मत्स्यः प्रवेशकाले यदि दक्षिणः स्यात् मनोरथादप्यधिकानि तूर्णं सिध्यंति कार्याण्यखिलानि पुंसाम् ३० ॥ टीका ॥ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दः अन्नलाभाय स्यात् ॥ २६ ॥ विप्रेति || ब्रह्मप्रदेशे अभ्यवहारकाले भोजनकाले पल्ल्या नादः विभागमाय स्यात् । रजन्याः पूर्वयामे मूर्धनि पल्ल्याः नादः प्रनष्टलाभाय स्यात् । रात्रेः मध्ययामे मूर्द्धनि पल्लीनादः भूपस्मरणाय भवति । तृतीये यामे ब्रह्मप्रदेशे पल्लीनादः उल्कापाताय स्यात् ॥ २७ ॥ ब्रह्मेति ॥ चतुर्थे प्रहरे ब्रह्ममदेशे गृहगोधिकायाः शब्दः शुभाय स्यात् । शांतदिशि प्रशांता पल्ली शुभावहा भवति । प्रदीप्ते दीप्ता पल्ली न शुभदा स्यात् ॥ २८ ॥ समागमादिति ॥ समागमात्परस्परसंगमात्पल्ली संगममाह । युद्धेन युद्धम् । वियोगादिरहमाहेति संबंधः सुरतप्रस मैथुनासक्ता पुंसां वरस्त्रीरतकेलिलाभं वरस्त्रियाःप्रधानयोषितः रतकेलिः निधुवनक्रीडा तस्याः लाभमवश्यं यच्छति ॥ २९ ॥ वाम इति ॥ यदि कुड्यमत्स्यः प्रयाणे ।। भाषा ॥ विप्रेति ॥ भोजन समयमें मस्तक के ऊपर पली बोले तो ब्राह्मणको आगमन होय. आर रात्रि के प्रथम प्रहर में मस्तकपै बोले तो नष्ट हुयेको लाभ होय. रात्रिके दूसरे प्रहरमें बोले तो राजाको स्मरण होय. रात्रिके तीसरे प्रहर में मस्तकके ऊपर बोले तो उल्कापात होय ॥ २७ ॥ ब्रह्मेति ॥ रात्रि के चौथे प्रहरमें मस्तक के ऊपर पली बोले तो शुभ होय. और शांत दिशा में प्रशांत पली होय तो शुभ करें और दीप्तदिशा में दीप्त पल्ली होय तो शुभकी देबेवारी नहीं जाननी ॥ २८ ॥ समागमादिति ॥ जो पलीनको परस्पर समागम देखे तो वाकूं भी संगम होय जो युद्ध करती दीखे तो युद्ध होय. जो पल्लीको वियोग दीखे वाकूं भी विरह होय. जो पल्लो संभोग में आसक्त होय तो पुरुषनकूं श्रेष्ठ स्त्री सूं रतिक्रीडा प्राप्त होय ॥ २९ ॥ वाम इति ॥ जो पल्लो गमनसमय में वांई होय प्रवेशसमय में जेमने भाग में होय तो पुरु For Private And Personal Use Only
SR No.020879
Book TitleVasantraj Shakunam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasantraj Bhatt, Bhanuchandravijay Gani
PublisherKhemraj Shrikrushnadas Shreshthi Mumbai
Publication Year1828
Total Pages596
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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