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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पिपीलिकाप्रकरणम्। (४०५) तोयपूर्णकलशोझिझतालयाद्भक्तपूर्णपिठराच्च निर्गताः ॥ निदिशंति कपिलाः पिपीलिका द्रव्यवृद्धिमचिरेण भूयसीम् ॥१३॥ स्वर्णरत्नधनमध्यतो यदा संभवंति सुकृतप्रचोदिताः॥स्वर्णरत्नधनवृद्धिहेतवस्तद्भवंति कपिलाः पिपीलिकाः ॥१४॥ ॥ टीका ॥ घृतेटिकाः आरनालघटमूलगाः आरनालघटस्य मूलं गच्छंति ता आरनालघटमूलगाःशुभं कुर्वति।तत्र आरनालं कांजिकं धान्यमध्यगाः पुनः अरुणकीटिकाः धान्य. स्य वृद्धिं कुर्वति । महानसं पाकस्थानं तत्रोद्गताः निर्गताः पुनः अचिरात्स्वल्पदिनरंव गहदाह सूचयंति। पाकस्थानं महानसमिति हैमः ॥ १२॥ तायोत ॥ तोयपूर्णैः कलशैः उझ्झितो वजितो यः आलयो गृहं तस्माद्भक्तपूर्णापठराच भक्तमो. दनं तेन पूर्ण यत्पिठरंभाजनविशेषः। “स्थाल्युखापिठरम्"इति हैमः।कोठीगडु इति कीटिकाशकुनम् - प्रसिद्धं तस्माच्च विनिर्गतानि अ० अ० ४२ ईशानकृणि | पूर्वदिशिप्रहर | मृताः कपिलाः पिपीलिकाः अग्निभय कहह युद्ध कहइ ८ ४ भय कहइ १ अचिरेण स्तोककालेन भूयसी व्यवृद्धि निर्दिशति कथयति॥ ॥१३॥ स्वर्णेति ॥ यदा स्वर्ण- उत्तरदिशि दक्षिणदिशि रत्नधनमध्यतः सुकृतप्रचोदिः सुख कहइ ७ लाभ कहइ ३ ताः कपिलाः पिपीलिकाःसंभवंति तदा स्वर्णरत्नधनवृद्धिहे तवस्ता भवंति। "कडारः कपिवायव्यकृणि पश्चिमदिशि नैर्ऋत्यकृणि लः पिंगपिशंगौ कपिंगलौ" इंधन कहइ ६ इत्यमरः॥ १४ ॥ गृहम् श्री कहइ ५ | वनलाभ कहइ ९ ॥भाषा॥ घडाके नीचे होय तो शुभ करें. फिर धान्यमें होय तो धान्यकी वृद्धि करें. जो रसोईमें निकसे तो थोडेसे दिनमें घरमें दाह आंचलगे ॥ १२ ॥ तोयेति ॥ जलके भरे कलश जहां नहीं होंय वा घरमेंसं वा चावलके भरे पात्रमेंसं निकसी हुई काली कीडी थोडेसे कालमें बहुत सी द्रव्यकी वृद्धि करें ॥ १३ ॥ स्वर्णेति ॥ जो कालीकीडी स्वर्ण रत्न, धन इनके मध्यमेंसू कोई पुण्यके प्रभाव कर निकलें तो स्वर्णरत्न धन इनकी वृद्धि करें ॥ १४ ॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020879
Book TitleVasantraj Shakunam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasantraj Bhatt, Bhanuchandravijay Gani
PublisherKhemraj Shrikrushnadas Shreshthi Mumbai
Publication Year1828
Total Pages596
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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