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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चतुष्पदानां प्रकरणम्। (३९१) ॥ टीका॥ करणीयमर्थ विघ्नति । शशकादिकानां तुल्य ऋक्षो ज्ञेयः शशोऽपि निशि वामशब्दः शस्तः ग्रंथांतरे वेवम् । पूर्वदेशे शशकस्याभिधानं षढो इति मरुत्स्थल्या दांतिउ इति प्रसिद्धः। नवीनग्रामवासे शशकदर्शने यायात् दृष्टिः प्रसरति । तावद्रामस्य वासो भवति ग्रामस्य दुर्गस्य वा भित्तिनिमित्तं काष्ठादौ नीयमाने शशकदर्शने तत्र कदाचित्पराभवो न भवति । ग्रामे गच्छतां नृणामादौ यदि पोदकी तथा शृगालः तित्तिरि वालेयो गर्दभो वा एषामन्यतमो वामःस्यात्तदुपरि चेच्छशको वाम स्यात्तदा कार्यसिद्धिकृत्स्यात् । प्रथमं शशको वामः स्यात्तदा गमनं न क्रियते सुखासी. नस्य शशकः चेजल्पति तदाशुभं किंवदंतीतिश्रुतिःस्यात् । तदा उद्वाहार्थं गच्छताम् शशकः तारया गच्छति । तदा उदाहितायाः प्रथमगर्भो न जीवति ग्रामप्रात्यर्थं गच्छतां वामः शशकः स्यात्तदा पराजयः दक्षिणः प्रतियाति तदा शुभकृत्। यदि चौरः चौर्य कृत्वा याति धनिकः पृष्ठगो भवति तस्य यदि शशक: वामः स्यात्तदा सैन्याधिपतिहस्ते समायाति । दक्षिणः तादृशो न ॥ ३६ ॥ ॥ इति शशकादयः॥ ॥ भाषा ॥ पहले कहे जे शशादिक इनको शब्द देखनो अवश्य करबेके योग्य कार्यकू नाश कर है. शशादिकनकी तुल्य ऋच्छ है. और ख़र्गोशको रात्रिमें बायो शब्द शुभ है. ग्रंथांतरमें ऐसो कयो है पूर्व देशमै शशकको नाम पढो कहेहैं. खर्गोश भी हैं. मारवाडमें दांतिउ कहेहैं. जो नवीन ग्राम बसायो चाहे वा समयमें शशक दीखे तो शशकके दीखबेमें जहांताई दृष्टि फैले तहां ताई ग्रामको वास होय. और ग्राम वा दुर्गकोट किला इनकी भीतके लिये काष्ठकू आदि ले जो वस्तु लाते होय. वा समयमें जो शशक दीख जाय तो वामें कदाचित् भी तिरस्कार नहीं होय, और प्राममें गमन करतो होय वा पुरुषकू प्रथम पोतकी वा शृगाल वा तित्तिर, गर्दभ इनसं और जो वामभागमें आय जाय तापीछे शशक वाममें आवै तो कार्यकी सिद्धि होय. जो प्रथम शशक वामभागमें आवे तो गमन नहीं करनो. सुखपूर्वक बैठयो पुरुष होय वाकू शशक बोले तो ये कहा अशुभ कहेहैं. और विवाहके अर्थ जातो होय वा पुरुपकू शशक जेमने भागमें गमन करे तो वा व्याही स्त्रीको प्रथम गर्भ नहीं जीवे. जो ग्रामके घातकरबेकू जाते होंय उन पुरुषनकू शशक वामभागमें हाय तो उनको पराजय होय. जो दक्षिणभागमे आवे तो शुभ करनेवालो जाननो. जो चोर चोरी करके चल्यो वाके पीछे धनी जाय वाकू शशक वामभागमें आय जाय तो सेनाके अधिपतिके हाथ आवे. For Private And Personal Use Only
SR No.020879
Book TitleVasantraj Shakunam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasantraj Bhatt, Bhanuchandravijay Gani
PublisherKhemraj Shrikrushnadas Shreshthi Mumbai
Publication Year1828
Total Pages596
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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