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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चतुष्पदानां प्रकरणम् । (३८३) भंभारवोन्मिश्रितहुंकृताढया वत्सोत्सुका हर्षपरीतचित्ताः॥ ज्ञेयाः सुरभ्यः शभदाः सदैव गोभिः समानाः शकुने महिष्यः॥१४॥ ॥इति गोमहिष्यौ ॥ अजामजं दर्शनकीर्तनाभ्यां शंसति शब्दं च तयोः प्रयाणे ॥ अजा निशीथे यदि रौति तेन सर्वाणि गेही लभते सुखानि ॥ १५॥ ॥ इत्यजाजौ ॥ ॥ टीका॥ क्षते ॥१३॥ भंभेति ॥ एवंविधाः सुरभ्यः सदैव शुभदा भवंति । कथंभूताः भंभारवोन्मिश्रितहुंकृताच्या इति भंभारवेण उन्मिश्रिता हुंकृतयः ताभिराव्या वत्सोसुका इति स्ववत्सं द्रष्टुमुत्कंठिता इत्यर्थः । हर्षपरीतचित्ता इति हर्षेण परीतं व्याप्तं चित्तं यास ताः तथा महिष्यः शकुने गोभिः समाना ज्ञेयाः॥१४॥ ॥ इति गोमहिण्यौ ॥ अजामिति ॥ अजां तथा अजं दर्शनकीर्तनाभ्यां बुधाः शंसति । तयोः शब्दं च प्रयाणे शंतति । यदि निशीथेऽजा रौति तेन गेही सर्वाणि सुखानि लभते ॥ १५ ॥ इत्यजाजौ। ॥भाषा॥ स्वामीकी मृत्यु होय. जो मक्षिकानकरके व्याप्त वा वेष्टित गौ होय तो शीघ्र जलकी दृष्टि आवै ॥ १३ ॥ भंभेति ॥ भंभाशब्दकर मिलवां हुंकार करती होय वा अपने बछडा देखवेकू उत्साह करती होय, अथवा हर्षयुक्त चित्त जिनके होय ऐसी गौ सदा शुभकी देबेवारी जाननी. और शकुनमें भेसभी गोको समान जाननी ॥ १४ ॥ ॥ इति गोमहिष्यो॥ अजामिति ॥ बकरिया बफरा इनको नाम वा दर्शन शुभ है. इनदोनोनको शब्द प्रयाण समयमें शुभ है. और जो बकरिया अर्द्धरात्रिपै शब्द करे तो वाको स्वामी सर्वसुख प्राप्त होय ॥ १५ ॥ ।। इत्यजाजौ ॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020879
Book TitleVasantraj Shakunam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasantraj Bhatt, Bhanuchandravijay Gani
PublisherKhemraj Shrikrushnadas Shreshthi Mumbai
Publication Year1828
Total Pages596
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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