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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (३०४) . वसंतराजशाकुने-द्वादशो वर्गः। आहारदोषाय च काकटीति स्याहाकुटाकुध्वनितं रणाय ।। केकेध्वनिष्टाकचिचिंटिकीति त्रयं त्विदं स्यात्पुरुदूषणाय ॥ ॥ १४०॥ यत्वा इति त्रिस्तदनु द्विरेतच्छब्दद्वयं स्यान्महते फलाय ॥ कोगित्ययं वाहननाशनं च ददाति हर्ष कुरुकुवितीदम् ॥१४१॥ यःवा इतीदं विरुतं सुदीच प्लुतस्वरेणोचरति प्रमोदात् ॥ उत्साहहीनः श्रमदैन्ययुक्तः स वायसः कार्यविनाशनाय ॥१४२॥ सामिष कवकवति भ.जयेद्धारयेकतिकतीति चाशनम् ॥ अभ्युपैति खररूक्षभाषिते प्रोषितः शवशवेति च शब्दः॥ १४३॥ ॥टीका ॥ ईदृशं च मित्राप्तये स्यात् काकाइतीदं च विघातकारि कवेति काकः स्वतुष्टयै वदति ॥ १३९ ॥ आहारेति ॥ काकटीति शब्दः आहारदोषाय भवति । टाकुटाकुइति द्विवारं ध्वनितारणाय भवति केके टाकुचिचिंटिकीति त्रयं त्विदं पुरुदूषणाय स्यात् दोषवाहुल्यायेत्यर्थः ॥ १४० ॥ यदिति ॥ का इति त्रिस्तदनु द्विः द्विारमुक्तं शब्द द्वयं महते फलाय स्यात् । कोगित्ययं शब्दः वाहननाशनं करोति। कुरुकुर्वितीदं ध्व नितं हर्ष ददाति ॥ १४१॥ य इति ॥ यः काकः का इतीदं विरुतं सुदीर्घ प्लुतस्वरेण प्रमादादुच्चरति तथा य उत्साहहीनःश्रमदैन्ययुक्तःस वायसः कार्यविनाशनाय भवति ॥ १४२ ॥ सामिषामिति ॥ कवकवेति शब्दे सामिषं भोजनं भोजयेत् ॥ भाषा ॥ काका ऐसो बोले तो विघातकारी होय. और कव ऐसो शब्द बोले तो अपनी तुष्टिके अर्थ जाननो ॥ १३९ । आहारेति ॥ काकटी ऐसो शब्द बोले तो आहारके दोषके अर्थ जाननो और टाकुटाकु ऐसो बोले तो संग्रामके अर्थ जाननो और केके टाकु चिंचिं टिकी ये तीनों शब्द बोले तो बहुतदूषणके अर्थ जाननो ॥ १४० ॥ यदिति ॥ जो काक का ये शब्द तीनपोत बोले तो पीछे के के ऐसो शब्द बोले तो महान् फलके अर्थ जाननो और कोग या प्रकार शब्द बोले तो वाहन नाशके अर्थ जाननो और कुरु करु ये कब्द हर्ष करै ॥ १४१॥ य इति ॥ जो काक क ऐसो शब्द दीर्घकाल प्लुतस्वर करके प्रमादते बोले भौर उत्साहहीन होय और श्रमकरके दीनता करके युक्त होय वो काक कार्यकू विनाश करे ॥ १४२ ॥ सामिषिमिति ॥ कवकव ऐसो शब्द बोले तो आमिषसहित For Private And Personal Use Only
SR No.020879
Book TitleVasantraj Shakunam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasantraj Bhatt, Bhanuchandravijay Gani
PublisherKhemraj Shrikrushnadas Shreshthi Mumbai
Publication Year1828
Total Pages596
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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