SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 315
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir काकरते दिक्चक्रप्रकरणम् । (२७९) यद्भाषितं शाकुनिकैर्विमिश्रं शुभाशुभं दिक्प्रहरक्रमेण ॥ तथा शुभं यच्छति दीप्तशब्दः श्रेयस्करः शांतरवस्तु काकः ॥ ४७ ॥ रम्ये खे दीप्तदिशि प्रपश्यञ्शांतां दिशं भूरिफलं ददाति ॥ तदेव तुच्छं वितरत्यशौचे दीप्तां स्थितः पश्यति दीप्तकाष्ठाम् ॥४८॥ यथोपदिष्टं फलमत्र दुष्टं तथैव तदीप्तदिशि स्थितः सन् ॥ ध्वांक्षो विरुक्षो विरवं करोति निरीक्षमाणः ककुभं प्रदीप्ताम् ॥ ४९ ॥ काकः प्रशांताभिमुखोतितुच्छं दीप्ताश्रितो दुष्टफलं ददाति ॥ शांताश्रितः शांतदिगीक्षणेन रूक्षारवोऽल्पं कथयत्यनिष्टम् ॥ ५० ॥ ॥ टीका ॥ यदिति ॥दिक्प्रहरक्रमेण शाकुनिकैर्विमिदं शुभाशुभं यद्भाषितं तत्र दीप्तशब्दः काकः अशुभं यच्छति शांतरवश्च काकः श्रेयस्करः स्यात् ॥ ४७ ।। रम्य इति ।। दीतदिशि रम्ये खे सति शांतदिशं पश्यन्काकः भूरिफलं ददाति असौ काकः तदेव तु च्छं वितरति यः दीप्तस्थितः दीप्तकाष्ठां च पश्यति॥४ायथोपदिष्टमिति ॥ यथा येन प्रकारेण दुष्टमत्र फलमुपदिष्टं तेन प्रकारेण दीप्तदिशि स्थितः सन्ध्वाक्षो विरू क्षं विरवं प्रदीप्तां ककुभं निरीक्षमाणः करोति ॥४९॥ काक इति॥ प्राशांताभिमुखः काकः अतितुच्छं स्वल्पं फलं ददाति दीप्ताश्रितः दुष्टफलं ददाति शांताश्रितःशांत ॥ भाषा॥ ॥ यदिति ॥ शकुनाचारीनने दिशाप्रहरके क्रमकर मिले वा शुभ अशुभ फल जो को उनदोनोंनमेंस दीप्तशब्द बोलवेवारो काक अशुभ देवे. और शांतशब्द बोले सो कल्याण करै ॥ ४७ ॥ रम्य इति ॥ दीप्तदिशामें स्थित होय शांत बोले शांतदिशामें दीखै तो काक बहुत फल देवे. और येही काक अपवित्रस्थानमें स्थित होय दीप्तदिशामें बैठो होय और दीप्तदिशामाऊं देखतो होय तो तुच्छ फल करै ॥ ४८ ॥ यथोपदिष्टमिति ॥ जो काक दीप्तदिशामें स्थित होय; रूखो शब्द करे, दीप्तदिशामें देखतो होय. तो दुष्ट फल करै ॥ ४९ ॥ काक इति ॥ शांतदिशामें मुख होय और दीप्तदिशामें बैठो होय तो काक अति तुच्छ दुष्ट फल देवै. और शांतदिशामें होय शांतदिशामें देखतो होय और For Private And Personal Use Only
SR No.020879
Book TitleVasantraj Shakunam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasantraj Bhatt, Bhanuchandravijay Gani
PublisherKhemraj Shrikrushnadas Shreshthi Mumbai
Publication Year1828
Total Pages596
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy