SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 295
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir खंजनप्रकरणम् । संदर्शितेऽन्येन च खंजरीटे स्यादन्यनार्या सह संगमाय ॥ विवादलाभो हलखातभूमौ धान्यस्य राशावपि धान्यलाभः॥ १७ ॥ भवेत्प्रभाते प्रियसंगमाय स्यादधुसंगाय तथांतरिक्षे ॥ भूमौ धनायावतरनभःस्तः खादन्पिबन्खादनपानलब्ध्यै ॥ १८ ॥ एवं प्रकारेषु मनोरमेषु स्थानांतरेविष्टफलांतराणि ॥ इच्छानुरूपाणि ददात्यवश्यं पूर्वत्र दृष्टोऽहनि खंजरीटः ॥ १९ ॥ वल्लीपत्कंटकिशुष्कवृक्ष दग्धास्थिशूलामृतभाजनेषु ॥ शून्यालये लोमसु गेहकोणे बुसे पलाशे सिकतासु यूपे ॥२०॥ ॥ टीका ॥ स्यात् ॥ १६ ॥ संदर्शित इति ॥ अन्येन संदर्शिते खंजरीटे अन्यनार्या सह संगलाभः स्यात् हलखातभूमौ दृष्टे विवादलाभ स्यात् धान्यस्य राशावपि दृष्टे धान्यलाभःस्यात् ॥ १७ ॥ भवेदिति ॥ प्रभाते दृष्टः प्रियदर्शनाय भवेत् तथांतरिक्ष बंधुसंगाय भवेत् भूमौ दृष्टः धनाय स्यात् नभस्तः अवतरन्खादन्भोजनपानलब्ध्यै स्यात् ॥ १८ ॥ एवमिति ॥ एवंप्रकारेषु मनोरमेषु स्थानांतरेषु पूर्वत्र अहनि दृष्टः खंजरीटः इच्छानुरूपाणि फलांतराणि अवश्यं ददाति ॥ १९ ॥ वल्लीति ॥ वल्ली व्रततिः दृषत्प्रस्तरः कंटकी कंटकाकुलः शुष्कः एवंविधो वृक्षः दग्धं ज्वलितं यदस्थि शूला प्रतीता मृतं कलेवरं भाजनं मद्यप्रभृतीनामिति शेषः पश्चाबंदः तेषु तथा . ॥ भाषा ॥ न स्थित होय तो वस्त्रको लाभ कर जो नावमें दीखे तो घरको लाभ करे ॥ १६ ॥ संदर्शित इति ॥ जो खंजरीट और करके सहित दीखै वा औरने अपनी दृष्टिसं दिखायो होय तो अन्य स्त्री करके संगको लाभ होय. हलकरके खादी हुई पृथ्वीमें दीखे तो विवादको लाभ करै. धान्यकी राशिपै दीखै तो धान्यको लाभ करे ॥ १७ ॥ भवोदिति ॥ खंजन प्रभातसमयमें दीखै तो अपने प्यारेको दर्शन करावे. जो अंतरिक्षमें दीखे तो बंधुको समागम करावे. और जो भूमिमें दीखै तो धनको लाभ करावे. और जो आकाशसं उत्तर तो वा खातो वा जलादिक पान करतो वा भोजन करतो दीखे तो प्राप्तिके अर्थ जाननो ॥ १८ ॥ ॥ एवमिति ॥ या प्रकारके मनोरम और स्थानमें प्रथमदिवसमें दीखै तो अपनी इच्छाके योग्य फलांतर अवश्य देवै ॥ १९॥ वल्लीति ॥ लता पाषाणको टूक, कांटेको सूखो वृक्ष और For Private And Personal Use Only
SR No.020879
Book TitleVasantraj Shakunam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasantraj Bhatt, Bhanuchandravijay Gani
PublisherKhemraj Shrikrushnadas Shreshthi Mumbai
Publication Year1828
Total Pages596
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy