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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२०८) वसंतराजशाकुने-सप्तमो वर्गः। सौम्यारवा भूत्रितयेऽपि भूत्वा तारा नितान्तं स्त्रयति प्रशा न्तम् ॥ स्यादुद्धतैकापि यदा निवृत्तौ शस्यं भवेद्भरिफलं तदानीम् ॥३५८ ॥ स्यादुद्धता यद्यवनित्रयेऽपि निवृत्तिकाले यदि दक्षिणा तत। सिद्धोऽपि युक्तार्थतया परार्थों व्रीहिर्बहुव्रीहिसमासवप्स्यात् ॥ ३५९॥ इति धान्यनिष्पत्तिप्रकरणं सप्तदशम् ॥ १७॥ पण्यं समर्घ यपि वामहर्षभावीति यस्मादवगम्यमेतत्।। ब्रूमोऽथ यत्रावगतेसमस्ताकृतार्थतास्यादणिजां गृहेऽपि ॥३६॥ ॥टीका॥ स्य सर्वनाशः स्यात् । अर्द्धवामा पुनः अर्द्धशस्यं नाशयति ॥ ३५७ ॥ सौम्यारवेति ॥ यदि भूत्रितयेऽपि सौम्यारवा भूत्वा तारा नितांतं प्रशांतं श्रयति यदा निवृत्तौ उतैकापि स्यात् तदा शस्यं भूरिफलंभवेत् ॥ ३५८ ॥ स्यादिति ॥ पधवनित्रयेऽपि उद्धृता स्यात् यदि पुनः निवृत्तिकाले दक्षिणा स्यात् तदा युक्तार्थतयापि सिद्धोऽपि त्रीहिः पदार्थः स्यात् । किंवत् बहुव्रीहिसमासवत् ॥ ३५९ ॥ इति शत्रुञ्जयकरमोचनादिमुकृतकारिमहोपाध्यायश्रीभानुचंद्रविरचितायाँ वसंतराजदीकायां पोदकीरुते धान्यनिष्पत्तिप्रकरणं सप्तदशम्॥१७॥ पण्यमिति ॥ पण्यं क्रयाणकं समर्घ स्वल्पमूल्यं यदि वा महर्ष बहुमूल्यंभावीति यस्मादवगम्यते तद्रूमः ॥ यथाति अस्मॅिल्लोके यस्मिन्नवगते सति वणिजां गृहेऽपि ॥ भाषा॥ पूर्ण होय तो धान्यकी पूर्ण उत्पत्ति होय.जो अर्द्धतारा होय तो अर्धधान्यकी उत्पत्ति होय और वाम होय तो सर्व धान्यको नाश होय. और अर्द्धवामा होय तो अर्ध अन्नको नाश होय ॥ ३५७ ।। सौम्यारवेति ॥ जो तीनों पृ में सौम्य शब्द कर निरन्तर शांतस्थानमें स्थित होय जो निवृत्तिमें उद्धृता होय तो अन्न बहुत फलवान् होय ॥ ३५८ ॥ स्यादिति ॥ जो श्यामा तीनों पृथ्वीमें उता होय जो फिर निवृत्तिकालमें दक्षिणा होय तो योग्यतासं सिद्ध भी होय गयो ब्रीहि अन्न चावल तोभी परार्थही होय स्वार्थमें नहीं होय ॥ ३५९ ॥ इति श्रीजटाशंकरतनयज्योतिर्विच्छ्रीधरविरचितायां वसंतराजभाषाटीकायां . पोदकीरुते धान्यनिष्पत्तिप्रकरणंसप्तदशम् ॥ १७ ॥ पण्यामिति ॥ जो वस्तु खरीदनी है वो वस्तु महँगी होयगी वा सस्ती होगी ये For Private And Personal Use Only
SR No.020879
Book TitleVasantraj Shakunam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasantraj Bhatt, Bhanuchandravijay Gani
PublisherKhemraj Shrikrushnadas Shreshthi Mumbai
Publication Year1828
Total Pages596
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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