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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( २०७ ) पोदकीरुते धान्य निष्पत्तिप्रकरणम् । तारापि भूत्वा यदि याति दीप्तं विरुद्धभावा शकुनैकदेवी || तदेति पृथ्वीशढुताशचौरैरुत्साद्यते शस्यमवातवृद्धि ॥ ३५४ ॥ कीटजग्धमफलांकुरशाखं शाखिनं श्रयति दक्षिणगापि ॥ पोदकी यदि तदा खलु धान्यं भक्षयंति शलभाखुशुकाद्याः || ३५५ || दक्षिणे रटति गच्छति वामं दीप्तमाश्रयति कर्मवि पाकात् | पांडवी यदि तदा नियमेन व्रीहयः समुपयति न पाकम् ॥ ३५६ ॥ पूर्णोत्पत्तिः पूर्णया तारया स्यादद्धेोत्पत्तिं त्वर्द्धतारा ब्रवीति ॥ धान्यस्य स्याद्रामया सर्वनाशस्तस्य त्वर्द्धनाशयत्यर्द्धवामा ॥ ३५७ ॥ ॥ टीका ॥ दग्धवृक्षमधिरोहति तदा सुरक्षितस्यापि पक्कस्य धान्यस्य अभितो दाहः स्यात् ॥ || ३५३ || तारापीति । यदि विरुद्धभावा शकुनैकदेवी तारापि भूत्वा दीप्तं स्थलं याति पृथ्वीशताशचौरैः अवाप्तवृद्धि शस्यमुत्साद्यते दूरीक्रियते ॥ ३५४ ॥ कीट इति || यदि दक्षिणगापि पोदकी कीटजग्धं अफलांकुरशाखं फलांकुरशाखा वर्जितं शाखिनं श्रयति तदा शलभाखुशुकाद्या इति शलभाः तीडी इति प्रसिद्धाः आखवः मूषकाः शुकाद्याः प्रतीताः खलु निश्वयेन धान्यं भक्षयंति ॥ ३५५ ॥ दक्षिण इति ॥ यदि पोदकी दक्षिणे रटति कर्मविपाकादीप्तं वामं स्थानं आश्रयति तदा नियमेन व्रीहयः न पाकं समुपयति ।। ३५६ ॥ पूर्णेति ॥ पूर्णया तारया पूर्णोत्पत्तिः धान्यस्य स्यात् । अर्धोत्पत्ति अर्धतारा ब्रवीति वामया धान्य ॥ भाषा ॥ जो शुभ शब्दकर जेमनी चली जाय और भस्मा होय दग्धवृक्षके ऊपर जाय बैठे तो खूब रक्षा जाकी होय रही होय पकोहुयो धान्य होय तो अग्निकर जर जाय ॥ ३५३ ॥ तारापीति ॥ जो पोदकी विरुद्धभाव होय फिर तारा भी होय करके दीप्तस्थानमें आय जाय तो राजा करके अग्निकरके चौर करके धान्यकी वृद्धि नाश करे || ३५४ ॥ कीट इति ॥ जो पोदकी जैमनी भी होय कीडाको खायो फल अंकुर शाखा रहित वृक्षपै स्थित होय तो टीडी मूसासूं या इनकूं आदिले जन्तु निश्चयही धान्यकूं भक्षण करें जो पोदकी जेमने भागमें शब्द करे कोई कर्म फलसूं वाममें होय नियम करके चावल परिपक्क नहीं होयँ ॥ ३५६ ॥ पूर्ण इति ॥ ॥ ३९५ ॥ दक्षिण इति ॥ दीप्तस्थान में स्थित होय तो जो श्यामा दक्षिणभागमें For Private And Personal Use Only
SR No.020879
Book TitleVasantraj Shakunam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasantraj Bhatt, Bhanuchandravijay Gani
PublisherKhemraj Shrikrushnadas Shreshthi Mumbai
Publication Year1828
Total Pages596
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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