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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२०४) वसंतराजशाकुने-सप्तमो वर्गः। विधाय विष्ठां यदि कृष्णपक्षी तारो भवेत्तद्विनिहंति वृष्टिम् ॥ उत्सृज्य वर्षों यदि याति वाममवग्रहं तत्सुमहांतमाह ॥३४४॥ करोति नीडभुवि चेहराहीसमान्यपत्यानि विजायतेवा॥ समुद्भवद्भानुमयूखवह्निर्जाज्वल्यते तजगतीं समस्ताम्॥३४५॥द्वारादिदेशेषु गृहस्य यस्य प्रत्यक्षरूपा कुरुते कुलायम् ॥ अंभोधरो वर्षति चेत्तथापि तच्छन्यतां याति च भज्यते वा ॥३४६॥ गते सरिद्रोधसि वा वराही शावानयुग्मानपि चेत्प्रसूते ।। नांभोधरो मुंचति तावदंभो यावत्समुज्झय्य न ते व्रजंति ॥ ३४७॥ ॥ टीका ॥ विधायेति ॥ यदि कृष्णपक्षी विष्ठां विधाय तारो भवेत्तदा वृष्टि विनिहति । यदि वर्चः उत्सृज्य वामं याति तदा सुमहांतर्मवग्रह जलदप्रतिबंधकम् आह कथयतीत्यर्थः ॥ ३४४ ॥ करोतीति ॥ चेद्यदि वराही भुवि नीडं कुरुते यदि वा समान्यपत्यानि विजायते तदा जगती समस्ता समुद्भवद्धानुमयूखवह्निभिः जाज्वल्यते ॥ ३४५ ॥ द्वारादीति ॥ यस्य गृहस्य द्वारादिदेशेषु प्रत्यक्षरूपा कुलायं पक्षिनिवासस्थानं कुरुते तदा चेद्यदि अंभोधरो वर्षति तथापि तद्गृहं शून्यतां गच्छति भज्यते वा ॥ ॥ ३४६ ॥ गतेति ॥ गते खाते सरिद्रोधसि वा यदि वराही शावानयुग्मान्विषमसंख्याकान्प्रसते तदा तावदंभोधरोन वर्षति यावत्ते समुज्झय्य न व्रजति ३४७॥ ॥भाषा॥ श्यामा वर्षासमयमें सुंदेशमें मत्र करै वमन करे तो महान् वृष्टि करै. जो शुष्कवृक्षमें मूत्र बमनकर तो तुच्छ वर्षा होय और जो पापाणके ऊपर करें तो तुषारकी खंड खंड वृष्टि होय ॥ ३४३ ॥ विधायेति ॥ जो कृष्णपक्षी वीटकरके जेमने भागमें आय जायतो वटिकू नाश करै. जो वीट करके वामभागमें आय जाय तो महान् मेघको प्रतिबंधक कहहै .॥ ३४४ ॥ करोतीति ॥ जो वराही पृथ्वीमें अपनो स्थानकरके समान अपत्य प्रगट करै तो सूर्यको किरणरूप अग्नि समस्त पृथ्वीकू तापकरै ॥ ३४५ ॥ द्वारादीति ॥ जा घरके द्वारकू आदिलेके कोई स्थानमें पोदकी अपनो निवास स्थान करे तो मेघवर्षा तो करै परंतु वा घरकू वा स्थानकू सूनो करदे अथवा फूट जाय गिरपडै ॥ ३४६ ॥ गतेति ॥ गर्तमें नदीको तटपै विषम ऊनसंख्या वालक प्रगट करै तो जब ताई वे बच्चा उड़करके नहीं चलन १ समुत्पूर्वकादु गुराश्चहल इत्यप्रत्यये तत्करोतीति णिचिं समासेऽननिति ल्यपि सिद्धं तदपेक्षया समुसृज्येति पाठः सुगमः । २ अन्तर्भावितण्यर्थोऽत्र ज्वलिः । For Private And Personal Use Only
SR No.020879
Book TitleVasantraj Shakunam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasantraj Bhatt, Bhanuchandravijay Gani
PublisherKhemraj Shrikrushnadas Shreshthi Mumbai
Publication Year1828
Total Pages596
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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