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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१९६) वसंतराजशाकुने-सप्तमो वर्गः। भूत्वोद्धृता भक्ष्यमथो गृहीत्वा प्रदक्षिणा क्षीरतरौ निविष्टा ॥ प्रत्यक्षदेवी यदि तत्प्रयातुर्भवत्यवश्यं महती धनर्दिः॥३१४॥ उन्मूलितच्छिन्नविशीर्णशुष्कवृक्षेषु भस्मोपलकर्परादौ ॥ तारोपविष्टा फलहानिकर्वी भवेच्च वामा नियमेन हंत्री ॥ ॥३१॥ गत्वातिदूरं पुरतः प्रयातुरदृश्यतां गच्छति यस्य तस्य ॥ क्षेमंकरी सम्मुखमभ्युपैति यस्य ध्रुवं तस्य पराजयः स्यात् ॥३१६॥ यदि प्रियं पांथमनुव्रजित्वा निवर्तमानस्य भवेद्वितारा॥ शुभावहा तयदि चेति तारायुक्तं तदा तेन समं प्रयातुम् ॥ ३१७॥ ॥टीका ॥ स्यात् तदानी लाभक्षतिः न तु कापि भीतिः ॥ ३१३ ॥ भूत्वेति ॥ यदि उद्धता भूत्वा भक्ष्यं गृहीत्वा प्रदक्षिणा क्षीरतरौ निविष्टा प्रत्यक्षदेवी स्यात्तदा प्रयातुरवश्य महती धनर्द्धिः स्यात् ॥ ३१४ ॥ उन्मूलितेति ॥ उन्मृलितच्छिन्नविशीर्णशुष्कवृक्षेषु भस्मोपलकपरेषु तारोपविष्टा फलहानिकी भवेत् तु पुनः वामा नियमेन हंत्री भवेदित्यर्थः ॥ ३१५॥ गत्वेति ॥ यदि पुरतः अतिदूरं गत्वा पोदकी यस्याऽहश्यतां गच्छति तस्य क्षेमंकरी स्यात् यस्य सम्मुखमभ्युपैति तस्य पराजयः स्यात् ॥ ३१६ ॥ यदीति ॥ यदि प्रियं पांथमनुव्रजित्वा निवर्तमानस्य वितारा भवेत्तदा शुभावहा । यदि तारा एति तदा तेन समं प्रयातुं युक्तमन्यथा तद्रक्षा न स्यादित्यर्थः ॥ ३१७ ॥ ॥ भाषा॥ क्षति करै और कोई भय भी करै ।। ३१३ ॥ भूत्वेति ॥ जो प्रत्यक्ष देवी उद्धृता होयकर भक्ष्य ग्रहण करके दक्षिण भागमें दूधके वृक्षमें जाय बैठे तो गमनकर्ताकू अवश्य महान् ऋद्धि होय ।। ॥ ३१४ ॥ उन्मूलितेति ॥ जो दक्षिणमाऊकी जड जाको उखड रही होय कट्यो होय सूत्रको होय ऐसे वृक्षनमें वा भरम पाषाण ठीकरा इनमें बैठी होय तो फलकी हानि करै. और जो वो वामा होय तो निश्चयही फलकी हानि करै ॥ ३१५ ॥ गत्वति ॥ जो पोदकी गमनकर्ताक अगाडी अत्यंत दूर जायकरके अदृश्य होय जाय तो ता पुरुषकू कल्याणके करबेवारी जाननी. और जाके सन्मुख आवे ताको पराजय करै ॥ ३१६ ॥ यदीति ॥ जो अपने प्यारे पाथकू पहुंचायबे जाय फिर बासू बोलके छोडके पीछकू बगदै For Private And Personal Use Only
SR No.020879
Book TitleVasantraj Shakunam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasantraj Bhatt, Bhanuchandravijay Gani
PublisherKhemraj Shrikrushnadas Shreshthi Mumbai
Publication Year1828
Total Pages596
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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