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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १९४ ) वसंतराजशाकुने- सप्तमो वर्गः । वामस्वरा दक्षिणकायचेष्टा तारागतिः शांतसमाश्रयश्च ॥ यातुः प्रयच्छंति समस्तकामान्निघ्नंति तानुक्तविपर्ययेण ३०६ || पुनः पुनर्वर्त्मनि यः प्रवासी विचेष्टयते पांथसमूहमात्रा ॥ असंशयं तस्य समापतेतां समस्तवित्तव्ययजीवनाशौ ॥३०७॥ श्यामानुलोमा प्रथमं ततो नु स्यादध्वगस्य प्रतिलोमगा चेत ॥ आस्तां तदाभीष्टफलाप्तिवार्ता मन्येऽतिकष्टं निपतत्यरिष्टम् ||३०८|| वामे रटित्वा यदि याति तारा भवंति कामाः सफलास्तदानीम् ॥ कृत्वापसव्यध्वनिमध्वगस्य वामं प्रयांती प्रति हन्ति सिद्धिम् ॥ ३०९ ॥ || STET II तद्वरं परं कदाचिद्दुः शकुन मुल्लंघयेत् तन्न वरम् ॥ ३०५ ॥ वाम इति ॥ वामस्वरा दक्षिणकायचेष्टा तारागतिः शांतसमाश्रयश्च यातुः समस्तकामान् प्रयच्छंति उक्तविपर्ययेण तात्रिघ्नन्ति ॥ ३०६ ॥ पुनरिति ॥ यः प्रवासी पुनः पुनः पांथसमूहमात्रा विचेष्टयते तस्य असंशयं समस्तवित्तव्ययजीवनाशौ समं भवेताम् ॥३०७॥ श्यामेति ॥ यदि प्रथमं श्यामा अनुलोमा स्यात् ततो नु अध्वगस्य प्रतिलोमगा चेत्स्यात् तदा अभीष्टफलाप्तिवार्ता आस्तां मन्ये अहमिति शेषः । अनिष्टमतिकष्टं निपतति ॥ ३०८ ॥ वाम इति ॥ यदि वामे रटित्वा तारा याति तदानीं कामाः सफला भवंति अध्वगस्य अपसव्ये ध्वनिं कृत्वा वामे प्रयांती सिद्धिं विनिर्हति ॥ ३०९ ॥ || STAT || ॥ ३०५ ॥ वाम इति ॥ वामस्वर होय, दक्षिण अंग में चेष्टा करती होय, जेमने मांऊं गति होय, शांतस्थानमें स्थित होय तो गमन कर्ताकूं सर्व कार्य देवे. और जो विपरीत होय तो सर्वकामनकूं नाश करै ॥ २०६ ॥ पुनरिति ॥ जो परदेशमें बारंबार पांथसमूहकी संगमें यात्रा चेष्टा करो करे तो ताके निःसंदेह समस्त द्रव्यको व्यय और जीवको नाश होय ॥ २०७ ॥ श्यामेति ॥ जो श्यामा प्रथम तो अनुलोमा होय ता पीछे मार्गीकूं प्रतिलोमा होय तो अभीष्टफलकी प्राप्तिकी वार्ता होय ये अनिष्ट और अरिष्ट दूर करे हैं ॥ २०८ ॥ ॥ वाम इति ॥ जो पोदकी वामभाग में शब्दकरके दक्षिणा होयजाय तो सबले काम सफल होयँ. और जो जेमने मांऊं शब्दकरके वामभागमें चली जाय तो सिद्धिकं नाशकरे ॥ ३०९ ॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020879
Book TitleVasantraj Shakunam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasantraj Bhatt, Bhanuchandravijay Gani
PublisherKhemraj Shrikrushnadas Shreshthi Mumbai
Publication Year1828
Total Pages596
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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