________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
पोदकीरुते संधिविग्रहजयादिप्रकरणम् । (१७७ ) स्थिरे विहंगद्वितये स्थिरं स्यायुद्धं भवेत्तत्र वियुज्यमाने ॥ भवेद्धनिर्वोभयतो द्वयस्य संधिर्भवेत्पार्थिवयोस्तदानीम् ॥ ॥२४३॥योद्धव्यमयोति विचित्यमाने यात्राविरुद्धः शकुनः शुभाय ॥ दिनांतरे स्यात्समरो यदा भवेत्क्षेमंकरो यात्रिक एव नान्यः॥२४४॥अंगानि यानि स्पृशति प्रयत्नाद्वामांघ्रिणा पांथसमूहमाता ॥ सुशिक्षितस्यापि भटस्य तेषु द्वंद्वप्रयुद्धे नियतं क्षतानि ॥२४५॥ अभ्यर्च्य मंत्रेण विहंगयुग्मं विन्यस्य भूपद्यनामधेयम् ॥ संधिविरोधः समरो जयो वा भंगोऽथवेत्यादि विकल्प्य पृच्छेत् ॥ २४६॥
॥टीका ॥ तारा प्रतिलोमगा चेत्स्यात्तदा वसुधाधिपस्य जयश्रीन स्यात् ॥ २४२ ॥ स्थिर इति ॥ स्थिरे विहंगद्वितये स्थिरं युद्धं भवेत् वियुज्यमाने तत्र तदोभयतो यस्य ध्वनिर्भवेत्तदानी पार्थिवयोः संधिर्भवेत् ॥ २४३ ॥ योद्धव्यमिति ॥ योद्धव्यं मया. येति विचित्यमाने यात्राविरुद्धः शकुनः शुभाय भवति । यदा तु दिनांतरे समरः स्यात्तदा यात्रिक एवं क्षेमकरः नान्यः ॥ २४४॥ अंगानीति ॥ वामांघ्रिणा पां. थसमूहमाता यानि अंगानि प्रयत्नात् स्पृशति सुशिक्षितस्यापि भटस्प बंद्वयुद्धे तेषु नियतं क्षतानि स्युः।।२४५॥ अभ्ययेति ॥ पूर्वोक्तं विहंगयुग्मम् अभ्यर्च्य भूपद्रयनामधेयं विन्यस्य च संधिःविरोधःसमरःजयःभंगः इति विकल्प्य पृच्छेत् ॥२४६॥
॥ भाषा॥
करवे वालेकू नाशकरै जो ताराहोयकरके प्रतिलोमगाहोय तो राजाके जयश्री होय ॥ २४२ ॥ ॥ स्थिर इति ॥ दोनोंपक्षी स्थिर हो तो युद्ध भी स्थिर होय और दोनों वियोगकरे हाय तो भी युद्धकरै. और दोनों एक होय मिलजाँय अथवा दोनोनको माऊंसं शब्द होय तोभी राजानको मिलापहोय ॥ २४३ ॥ योद्धव्यमिति ॥ मोकू अब युद्ध करनोहै ऐसो मनमें चिंतमनकरत यात्राते विरुद्ध शकुन होयं तो शुभके अर्थ होय और जो बहुत दिनमें संग्राम होय तो यात्राके शकुन है सोई कल्याण करबेवारे हैं और नहीं हैं ॥ २४४ ॥ ॥ अंगानीति ॥ पोदकी बाय पाँवकरके जो अंगकू स्पर्श करे तो बहुत सुंदर सीखेहुये योद्धानरनको द्वंद्वयुद्धमें नाश होय ॥ २४५ ॥ अभ्यच्यति ॥ पहले कहेपक्षीको युग्म ताको पूजन करके दोनों राजानको नाम धरकरके फिर संधिविरोध संग्राम जय भंग इनकं
For Private And Personal Use Only