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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (.१६२) वसंतराजशाकुने-सप्तमो वर्गः। अब्दायनर्तृनुत मासपक्षदिनानि यामानथ नाडिका वा ॥ नरस्य भूमेरथवा विभागे प्रकल्पयेत्कालविनिर्णयाय१९१॥ चेष्टानिनादागमनस्थितानामेकेन पादो द्वितयेन चाईम् ॥ फलस्य पादत्रितयं त्रिभिः स्याद्भवेत्समस्तैर्विहितैः समस्तम् ॥ १९२ ॥ चेष्टादिकं नाचरति क्षुधार्ताऽग्रहेण गृहाति तु भक्ष्यमेव । प्रत्यक्षदेवी यदि किंचिदूनं भवत्यभिप्रेतफलं तदानीम् ॥ १९३॥ प्रशस्तचेष्टादिचतुष्टया चेदाति भक्ष्यं चटिका तदानीम् ॥ अनंजितामित्रकलत्रनेत्रामेकातपत्रां कुरुते धरित्रीम् ।। १९४॥ ॥ टीका॥ अब्दायनेति ॥ अथवा पक्षांतरे नरस्य कालविनिर्णयायभूमेर्विभागे अब्दायन निति अब्दं वर्षम् अयने दक्षिणोत्तरायणेऋतवः षद वसंतप्रभृतयःमासपक्षदिनानिप्र. सिद्धानि यामाः प्रहराः नाडिकाः घटिकाः प्रकल्पयेत्प्रकल्पनां कुर्यात् ॥ १९१ ॥ चेष्टंति ॥ चेष्टानिनादागमनस्थितानां चतुर्णा शांतानां मध्यादेकेन पादः चतुर्थाशः फलं स्यात् । समीहितस्येति शेषः । द्वितयेन अई फलं स्यात् । त्रिभिः पादत्रितयं पादोनं फलं स्यात् । समस्तैश्चतुर्भिः समस्तं फलं स्यादित्यर्थः ॥ १९२ ॥ चेष्टादिकमिति।। चेद्यदि प्रत्यक्षदेवी सुधार्ता पूर्वोक्तं चेष्टादिकं नाचरति तु पुनरर्थे आग्रहेण भक्ष्यमेव गृहाति तदा तदानीमभिप्रेतफलं किंचिदूनं भवति ॥ १९३ ॥ प्रशस्तेति ॥ प्रशस्तचेष्टादिचतुष्टयाचेच्चटिका भक्ष्यं गृह्णाति तदानीम् एकातपत्रों ॥भाषा ॥ देवे. और भूमिके तीनों तोरणभागनें पांडविका प्रदक्षिणा दग्वैि तो बहुत फल देवै ॥ १९ ॥ अन्दायेति ॥ मनुष्यके कालनिर्णयके अर्थ भूमिभागमें अर्थात् पृथ्वीभागमें वर्ष दक्षिणायन उत्तरायण और छः ऋतु मास पक्ष दिन घटी इनें कल्पना करै ।। १९१॥ चेष्टेति ॥ चेष्टा नादगमन स्थान ये चारों शांत होंय इनमेंसू एक होय तो कार्यकोभी एक पाद होय. और जो दोय होय तो कार्य आधो होय. और जो तीन हो तो कार्यके तीन पाद होय. और जो समस्त चारों होय तो समस्तकार्य फल होय, ॥ १९२ ॥ चेष्टादिकमिति ॥ जो प्रत्यक्ष देवी भूखी होय, और चेष्टादिक कछू भी न करे, फिर आग्रह करके भन्यग्रहण करे तो चांछित कार्य कळुक न्यून करै ॥ १९३ ॥ प्रशस्तेति ॥जो चारों चेष्टानकरके भक्ष्य For Private And Personal Use Only
SR No.020879
Book TitleVasantraj Shakunam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasantraj Bhatt, Bhanuchandravijay Gani
PublisherKhemraj Shrikrushnadas Shreshthi Mumbai
Publication Year1828
Total Pages596
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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