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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पोदकीरुते यात्राप्रकरणम् । (१६१) लाभो महान्दंडमितप्रदेशे स्यान्मध्यमो दंडयुगप्रमाणे।। त्रिदंडमाने तु भवेज्जघन्यः प्रदक्षिणात्पांथसमूहमातुः॥१८॥ मासैश्चतुर्भिः प्रथमेऽर्थलाभस्ततो द्वितीये पुनरष्टभिःस्यात्।। वर्षातृतीये वसुधाविभागे प्रदक्षिणायां शकुनैकदेव्याम् ॥ ॥ १८९ ॥ आये महत्तोरणभूमिभागे स्वल्पं द्वितीयेऽल्पतरं तृतीये ॥ फलं तु भूमित्रितये प्रभूतं प्रदक्षिणा पांडक्किा ददाति ॥ १९ ॥ ॥ टीका ॥ . नान्दैः फलदा भपति अकल्पिते कालविभागे एवंमानो ग्राह्यः प्रकल्पिते कालविभागे तु कल्पित एव मानो ग्राह्यः ॥१८७ ॥ लाभ इति ॥ पांथसमूहमातुः देव्या दंडमितप्रदेशे प्रदक्षिणान्महाँल्लामोभवेतादंडयुगप्रमाणे प्रदक्षिणान्मध्यमोलामा स्यात्। त्रिदंडमाने प्रदक्षिणाजघन्यो लाभः स्यात् ॥ १८८ ॥ मासैरिति ।। शकुनैकदेव्याः प्रदक्षिणायाः प्रथमे वसुधाविभागे मासैश्चतुर्भिरर्थलाभः स्यात्। द्वितीये भूविभागे अष्टभिर्मासैरर्थलामः स्यात् । तृतीये वसुधाविभागे वर्षाल्लाभः स्यात्॥१८९।। आद्य इति ॥ आये तोरणभूमिभागे प्रदक्षिणा पांडविका महत्फलं ददाति । द्वितीये स्वल्पफलं ददाति । पुनस्ततीये अल्पतरं भूमित्रितये प्रभूतं फलं दत्ते॥१९०३ "भाषा ।। मासभरमें कल देवै. और कटिभागके समान देशमें होय गमन करे तो छ: नहीनामें फल देवे. और जानुको समानदेशमें होयकर गमनकर तो वर्ष दिनमें फल देवै. यामें प्रवृत्ति निवृत्तिकाल विभाग विना या प्रकार फल करे है ।। १८७ ॥ लाभ इति ॥ भेदकी दंडके प्रमाण देशमें प्रदक्षिणा होय जाय वाते महान् लाभ होय. और जो दोय दंडके प्रमाणमें प्रदक्षिणा हो जाय वाते मध्यम लाभ होय, और सीन दंडके प्रमाण देशमें प्रदक्षिणा होय जाय तो वाते निकृष्ट लाभ होय ॥ १८८ ॥ मासैरिति ॥ शकुनकी देवी पोदकी पूर्व कहीं जो अकुनकी पृथ्वी ताके प्रथमभागमें प्रदक्षिणा होय, तो चारमासकरके लाभ होय. और पृथ्वीके दूसरे भागमें प्रदक्षिणा होय तो आठ मास करके अर्थ लाभ होय. और पृथ्वींक तीसरे भागमें प्रदक्षिणा होय तो एकवर्षमें लाभ होय ॥ १८९ ॥ आद्य इति ॥ प्रथम जो पृथ्वीको तोरण भाग तामें प्रदक्षिणा होय तो महान् फल देवैः और दूसरे तोरण भागमें प्रदक्षिण होय तो अल्प फल देवे. और तीसरे तोण भागमें प्रदक्षिणा होय तो बहुत अल्पफल For Private And Personal Use Only
SR No.020879
Book TitleVasantraj Shakunam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasantraj Bhatt, Bhanuchandravijay Gani
PublisherKhemraj Shrikrushnadas Shreshthi Mumbai
Publication Year1828
Total Pages596
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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