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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १५६ ) वसंतराजशाकुने-सप्तमो वर्गः । शुष्कभप्रकटुकंटकिवृक्षाच्छीर्णपर्णमथवाप्यधिरुह्य ॥ दक्षिणा प्रकुरुतेऽल्पकमर्थ वामगा त्वपरिहार्यमनर्थम् ॥ १७॥ प्रत्यक्षरूपा वरमुद्धतापि मनोरमं स्थानमधिश्रयंती॥ न सा प्रशस्तादितरप्रदेशमधिष्ठिता दक्षिणगापि शस्ता ॥ ॥ १७२॥ यांती वजित्वा यदि वा विरौति व्यावर्तते वा गमनं विधाय ॥ जुगुप्सिते चोपविशेत्प्रदेशे दुर्गा फलं हन्ति गतेस्तदानीम् ॥ १७३॥ ॥ टीका ॥ . मध्यादेकतरेण एकेन दीप्ता दक्षिणगापि दुर्गाभयंकरी स्यात्।दिक्च कालश्च चेष्टाच निनदश्च स्थितिश्च दिकालचेष्टानिनदस्थितयः इतरेतरबंदः तासाम् । तु पुनः वामगा सा मृत्युविधायिनी स्यात् । गंतुरिति शेषः॥ १७० ॥ शुष्केति ॥ शुष्क भमकदुकंटकिवृक्षान् शुष्काश्च भमाश्च कटवश्च कंटका विद्यते येषुते कंटकिनश्च शुकभमकटकंटकिनः इतरेतरबंदः। पश्चात्ते च ते वृक्षाश्चेति कर्मधारयः तान् अथ वा शीर्णपर्ण पतितपर्णमपि वृक्षमिति शेषः । अधिरुह्य दक्षिणा भवति तदा अल्पकमर्थ प्रकुरुते एवंविधा वामगा अपरिहार्य परिहर्तमशक्यमनर्थ कुरुते क्वचिद्रावखंडं प्रस्तरशकलमित्यपि पाठः ॥१७१॥ प्रत्यक्षेति ॥ प्रत्यक्षरूपा देवी उद्धता सती वामापिमनोहरं स्थानमाश्रयंतीवरं शुभा स्यात्प्रशस्ताच्छुभप्रदेशादितरप्रदेशं दुष्टप्रदेशमधिष्ठिता दक्षिणगापि शस्ता न ॥ १७२ ॥ यांतीति ॥ यांती गच्छंती ब ॥ भाषा ॥ और जो याप्रकार दीप्ता वामभागमें आवे तो गमनकर्ताकू मृत्यु करवेवारी जाननी ॥ १७० ॥ शुष्केति ॥ सूखो भग्न हुयो कडुवो कांटेको ऐसे वृक्षपै बैठकरके अथवा पाषाणकोटक होय यापै बैठकरके वामभागतें उड़कर दक्षिणभागमें आय जाय तो अल्प अर्थ करै, और इनपै बैठके वामभागमें आयजाय तो जाके दूर होयनेको उपायही नहीं ऐसो अनर्थ करे ॥ १७१ ॥ प्रत्यक्षेति ॥ जो प्रत्यक्ष देवी पोदकी उद्धृता होय अर्थात् दक्षिणभागते उडकरके वामप्रदेशमें आयकर मनोहर स्थानमें स्थित होय तो उत्तम जाननी. फिर वोही पोदकी उत्तमस्थानमेंसू उड़कर फिर और स्थानपै जाय बैठे तो फिर जेमने माऊंभी होय तोभी श्रेष्ठ नहीं जाननी ॥ १५२ ॥ यांतीति ॥ जो पोदकी चलती चलती शब्द कर अथवा जाय करकै शब्द करै अथवा गमन करके फिर पीछी बगद करके निंदितदेशमें स्था For Private And Personal Use Only
SR No.020879
Book TitleVasantraj Shakunam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasantraj Bhatt, Bhanuchandravijay Gani
PublisherKhemraj Shrikrushnadas Shreshthi Mumbai
Publication Year1828
Total Pages596
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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