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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पोदकीरुते यात्राप्रकरणम् । या ब्रह्मपुत्री गमनोधतानामग्रे वजित्वाऽभिमुखी समेति ॥ अदक्षिणा कार्यविनाशनाय स्थादक्षिणा सा द्रविणाप्तिहेतुः।। ॥ १६७ ॥ भूत्वा वितारा परिगृह्य भक्ष्यं प्रदक्षिणेनाभ्युपगम्य देवी ॥ मनोरमं स्थानकमाश्रयंती हत्वापदं संपदमादधाति ।। १६८ ॥ निमज्य धूल्यां यदि शुकृपक्षा विधाय चेष्टां यदि वा विदुष्टाम् ॥ प्रयाति तारा विपदं विधाय क्षणन लक्ष्मी तदुपादधाति ॥ १६९॥ दिकालचेष्टानिनदस्थितीनां मध्याद्भवेदेकतरेण दीप्ता॥ भयंकरी दक्षिणगापि दुर्गा स्यावामगा मृत्युविधायिनी तु ॥ १७० ॥ ॥ टीका ॥ रणाय युद्धाय स्यात् । एवंविधा वामा अवश्यं गंतुर्मरणाय स्यात् ॥ १६६ ॥ या ब्रह्मपुत्रीति ॥ या ब्रह्मपुत्री देवी गमनोधतानामग्रे जित्वा अभिमुखी समेति ततः अदक्षिणा वामा स्यात्तदा कार्यविनाशनाय भवति सा चेदक्षिणा स्यात्तदादविणाप्तिहेतुःस्यादित्यर्थः॥दविणंधनं तस्य प्राप्तिः तस्या हेतुः कारणम्। 'स्वमृक्थं द्रविणं धनम्' इति हैमः॥ १६७ ॥ भूत्वेति॥ प्रथमं वितारा वामा भूत्वा भक्ष्यं परिगृह्य गृहीत्वा पुनः प्रदक्षिणेनाभ्युपगम्य मनोरमं स्थानकमाश्रयन्ती देवी आपदं हवा संपदमादधाति ॥ १६८ ॥ निमज्येति ।। यदि शुक्लपक्षा धूल्यां निमज्य स्नात्वा यदि वा दुष्टां चेष्टां विधाय तारा प्रयाति तदा विपदं विधाय क्षणेन लक्ष्मीमुपाद. धाति ।। १६९ ।। दिक्कालेति ॥ यदि दिकालचेष्टानिनदस्थितीनां पूर्वोक्तानां ॥ भाषा॥ होय तो अवश्य गमनकर्ताकू मृत्यु करे ॥ १६६ ॥ या ब्रह्मपुत्रीति ॥ ब्रह्मपुत्री जो पोदकी 'गमनकरनेवाले पुरुषके अगाडी जायके फिर पीछे वाके सम्मुख आय फिर वामा होय जाय तो कार्यको नाश करै. और जो दक्षिणभागमें आय जाय तो धनप्राप्ति करावे ॥ १६७ ॥ भूत्वेति।। प्रथम वाम होय कर भक्ष्यग्रहण करके फिर दक्षिणभागमें जाय · सुंदर स्थानमें जाय बैठे तो आपदा दूर करके संपदा करे ॥ १६८ ॥ निमज्येति ॥ श्वेत जाके पंख ऐसी पोदकी धूलमें स्नान करके बुरी चेष्टाकरके जो दक्षिणमें चली जाय तो आपदा दे करके क्षणमें ही लक्ष्मी प्राप्त करे ॥ १६९ ॥ दिक्कालेति ॥ जो - दिशा काल चेष्टा नाद स्थिति ये पहले कहे हैं, इनमेंसू एकप्रकारकी दीप्ता होय फिर वो दक्षिणभागमें भी होय तो भय कर For Private And Personal Use Only
SR No.020879
Book TitleVasantraj Shakunam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasantraj Bhatt, Bhanuchandravijay Gani
PublisherKhemraj Shrikrushnadas Shreshthi Mumbai
Publication Year1828
Total Pages596
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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