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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पोदकीरते गतिप्रकरणम्। (१४३) पराङ्मुखी गच्छति या च पृष्ठात्पृष्ठस्थितं साकरणीयमाह ।। आयाति पृष्ठाभिमुखं पुनर्या प्रयोजनं सा कथयत्यतीतम् ॥ १२८ ॥ निर्गच्छतो गच्छति पृष्ठवामा पृष्टप्रकोपार्थविनाशनार्था ॥ आहोर्द्धगाधोवदना पतंती वामे मृति दक्षिणतोऽरिनाशम् ॥ १२९ ॥ वामावर्ता पोदकी पृष्ठभागानेष्टानिष्टे सा भयादौ प्रशस्ता ॥ या स्यात्पृष्ठादक्षिणावर्तिनी सा कार्य भीष्टे शस्यते न त्वनिष्टे ॥ १३० ॥ इति पोदकीरुते गतिप्रकरणं षष्ठम् ॥ ६॥ ॥ टीका ॥ लाभं कुमारी कुरुते । पुनः वामेन भागेन पुमांसं पुनःपुनः आवेष्टयंती नरस्य मरणं करोति ॥ १२७ ॥ परान्मुखीति ॥ या च पृष्ठात्पराङ्मुखी गच्छति सा पृष्ठे स्थितं करणीयमाह। या पुनः पृष्ठाभिमुखमायाति सा प्रयोजनं कार्यमतीतं कथयति।। ॥ १२८॥ निर्गच्छत इति ॥ यदि निर्गच्छतः पुंसः पृष्ठवामा गच्छति पृष्ठे वामा भवति । तदा पृष्ठप्रकोपार्थविनाशनार्था इति पृष्ठस्थितो जनसमुदायःनृपो वा तेषां प्रकोपः अर्थविनाशश्च तावेव अर्थः प्रयोजनं यस्याःसा तथेत्यर्थः । ऊद्धगा अधोवदना पती च वामे वामभागे मृतिमाह मरणं ब्रवीति। दक्षिणे दक्षिणभागे पुनःऊटुंगा अधोवदना पतंती अरिनाशमाह ॥१२९॥ वामेति ॥ पोदकी देवी पृष्ठभा ॥भाषा ॥ जो बांये भागकरके पुरुषनक आवेटन करै तो पुरुषको मरण करे है ॥ १२७ ॥ पराङमुखी. ति॥ जो तारा पीठ पीछे ते मोढो फेर करके गमन करै तो कार्यकं पीछे होयगो ऐसो कहे है ये जाननो फेर पीठ माऊंते सम्मुख आय जाय तो कार्यव्यतीत होय गयो ताय कहे है । ॥ १२८ ॥ निर्गच्छत इति ॥ जो पुरुष यात्राकरके निकस्यो ताके तारों पृष्ट वामा होय तो अर्थात् पीठमाऊं • बाई गमन करे तो पिछाडी कोई मनुष्यनको समूह होय अथवा राजा होय तो उनको कोप, और अर्थनाश होय, और ऊपर गमन कररही होय वाको नीचो मुख होव नीचेकू पड़ती होय, और वामभागमें होय तो मृत्युकी करवेवारी जाननी. और जो ऐसे आचरण करत जेमने भागमें होय तो वैरीको नाश करै ॥ १२९ ॥ वामेति ॥ पीठमा ऊसं बांई होय कर मनुष्यकं आवेष्टन करै तो बांछित कार्यमें योग्य नहीं वो भयादिक कार्यमें योग्य है और जो पोदकी पीछेसू जेमनी माऊं होय कर मनु For Private And Personal Use Only
SR No.020879
Book TitleVasantraj Shakunam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasantraj Bhatt, Bhanuchandravijay Gani
PublisherKhemraj Shrikrushnadas Shreshthi Mumbai
Publication Year1828
Total Pages596
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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