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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पोदकीरुतेऽशुभचेष्टाप्रकरणम् । (१३३) केशास्थिवका मरणं नराणां काष्ठानना कष्टमुपादधाति ॥ अंगारवका क्षयकृत्कुलस्य बंधान्यं जल्पति रज्जुक्का ॥ ॥ ९४ ॥ तनुं धुनाना फलहानिरोगी ब्रवीति चंच्चा हनेनन घातम् ॥ संत्रोव्य पत्राणि भुवि शिपंती स्यात्पोदकी कार्यविनाशयित्री ॥ ९५ ।। नश्यति सर्वाणि समीहितानि धनुधरीमूर्द्धविधूननेन ॥ शत्रद्भवां भीतिमुपादधाति श्यामा प्रविस्तारितवामपक्षा ॥ ९६॥ ॥ टीका ॥ भस्मनि स्नाती जीवनाशं परिव्राजकतां संन्यासं वा विधत्ते॥९३॥कशास्थीति ॥केशास्थीनि वक्रेमुखे यस्याः सा नराणां मरणमुपादधाति करोति।काष्ठानना काष्ठमान ने मुखे यस्याः सा पुनः कष्टं कुरुते।अंगारवका कुलस्य क्षयकृद्भवतिारज्जवक्रावधादयंजल्पति॥९४॥तनुमिति॥तनुशरीरंथुनाना कंपयंती फलहानिरोगी फलम्य हानिः 'फलहानिःफलहानिश्च रोगश्चफलहानिरोगावितरेतरबंदाब्रवीति कथयति। चंच्या हननेन कुट्टनेन शरीरस्येति शेषः। घातं शस्त्रघातं ब्रवीति पत्राणि पिच्छानि संत्रोट्य भुवि क्षिपंती पोदकी कार्यविनाशयित्री कार्यविनाशक: स्यात् ॥९५॥ नश्यंतीति। धनुर्धरीमूर्द्धविधूननेन मस्तकविकंपनेन सर्वाणि समीहितानि वांछितानि नश्यति नाशं प्रामवंति। श्यामा प्रविस्तारितवामपक्षा प्रकर्षण विस्तारिता विस्तार प्रापितो वामः सव्यः पक्षो गरुत् यया सा तथोक्ता गरुत्पक्षच्छदाः पत्रं पतत्रं च तनूरुहम् कर और राखमें न्हाय रहो होय तो जीवनाश करै अथवा संन्यासी कर दे ॥ ९३ ॥ केशास्थीति ॥ केश हाड ये वाके मुखमें होय तो मरण करे और काष्ट मोढे, होय तो कष्ट करावे और अंगार वाके मोढेमें होय तो कुलको क्षय करावे वारी जाननी और रज्जु जो जे वडी मुखमें होय तो बंधनते भय करावे ॥ ९४ ॥ तनुमिति ॥ जो शरीरकू कंपायमान कररही होय तो फल की हानि करे और रोग करे और चोंच करके शरारक प्रहार करती होय तो घात कराने पोदकी अपने पंखनकू काटके उखाडके धरतीमें पटके तो कार्यकी विनाशकर्ता जाननी ॥ ९५ ॥ नश्यंतीति ।। पोदकी मस्तक कंायमान करती होय तो संपूर्ण कार्य नाश कर और वायें पंखकं फैलाय दे लंबोकरदे तो शत्रुते भय प्रगट करें For Private And Personal Use Only
SR No.020879
Book TitleVasantraj Shakunam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasantraj Bhatt, Bhanuchandravijay Gani
PublisherKhemraj Shrikrushnadas Shreshthi Mumbai
Publication Year1828
Total Pages596
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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