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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१०८) वसंतराजशाकुने-सप्तमो वर्गः। ईदृशं विषुवतोभवेद्दयादेक्षिणायनदिने तु शांकरी ॥ पावकी ज्वलति चोत्तरायणे भस्मधूमसहिते तु पार्श्वयोः ॥३७॥ ॥ टीका ॥ ईदृशमिति ॥ रात्र्यंतयामार्धादारभ्य यावत्प्रभाते घटिकाचतुष्टयं तावदग्धा दिगंशी ज्वलिता दिगन्द्री संधुक्षिता अनलदिग्भवति ततः द्वितीयमहरे पूर्वदिग्दग्धा अग्निकूणिर्दीप्ता दक्षिणदिग्धूमिता तृतीयप्रहरे अमिंदिग्दग्धा दक्षिणदिग्दीप्ता नैर्ऋति धूमिता अन्याः पंच शांता ततश्चतुर्थप्रहरे दक्षिणदिग्दग्धानैऋतिकूणिर्दीप्ता पश्चिमदिग्धूमिता अन्योः पंच शांताःपंचमाहरे नैऋतिर्दग्धा पश्चिमदिग्दीप्ता वायव्य कूणिचूंमिता अन्याः पंच शांताः षष्ठे यामे पश्चिमदिग्दग्धा वायव्यकूणिर्दीप्ता उत्तर दिग्धूमिता अन्याः पंच शांताः सप्तमे प्रहरे वायव्यकूणिर्दग्धा उत्तरदिग्दीताईशानकूणिधूमिता अन्याःपंचशांताः अष्टमे प्रहरे उत्तरदिग्दग्धा ईशानकूणिर्दीप्ता पूर्वदिग्धूमिता अन्याः पंच शांताः पुनः प्रभाते पूर्वोक्तमेव ईदृशं दग्धादिस्वरूपं विषुवतोईयोर्मेषतुलयोभवेत्। "समरात्रिदिवे काले विषुवद्विषुवंचतत्" इत्युक्तेस्तत्रैव तत्सं, ॥ भाषा ॥ प्रचलिता, और अग्निदिशा संधुक्षिता ॥ ३६ ॥ ईदृशमिति ॥ रात्रिके अंतयामको अर्द्ध प्रहरते लेकर जबतक प्रभातकी चार बडी तब ताई ईशानदिशा दग्धा, और इंद्रकी पूर्वदिशा ज्वलिता, और अग्निदिशा संधुक्षिता होय है ता पीछे दूसरे प्रहरमें पूर्वदिशादग्या और अग्निकोण दप्तिा दक्षिणदिशा धूमिता, और तृतीय प्रहरमें आग्न कोण दग्धा, दक्षिणदिशा दीप्ता, नैरृति दिशा धूमिता और जे पांचों दिशाते शांता है, और ता पीछे चतुर्थ प्रहरमें दक्षिणदिशा दग्धा, नैत्राति दिशा दप्तिा पश्चिम दिशा मिता, और पांचो दिशा शांता, और पंचम प्रहरमें नैति दिशा दग्धा, पश्चिम दिशा दीप्ता दग्धा, वायव्य कोण धूमिता, और पांचों दिशा शांता छठे प्रहरमें पश्चिम दिशादग्धा, वायव्यदिशा दीप्ता, उत्तर दिशा मिता, और पांचों दिशा शांता हैं और सातवें प्रहरमें वायव्य कणदग्धा, उत्तर दिशा दीप्ता, ईशानदिशा धूमिता, और पांचों दिशा शांता आठवें प्रहरमें उत्तर दिशा दग्धा, ईशानकूण दीप्ता, पूर्व दिशा धूमिता, और पांचों दिशा शांता, मेष तुलाके सर्यहोय तत्र For Private And Personal Use Only
SR No.020879
Book TitleVasantraj Shakunam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasantraj Bhatt, Bhanuchandravijay Gani
PublisherKhemraj Shrikrushnadas Shreshthi Mumbai
Publication Year1828
Total Pages596
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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