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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (९०) वसंतराजशाकुने-षष्ठो वर्गः। मुष्के सकंपे तनयस्य जन्म बस्तौ सकंपे युवतिप्रवृद्धिः ॥ दोष्णः प्रकंपे पुनरूरुपृष्ठे उरोः पुरः स्यात्सुसहायलाभः ॥ ॥८॥ स्याजानुकंपे अचिरेण संधिर्जघाप्रकंपेऽपि च लाभनाशः॥ स्थानाप्तिरूद्धं चरणस्य कंपे यात्रा सलाभांत्रितलप्रकंपे ॥ ९॥ पुंसां सदा दक्षिणदेहभागे स्त्रीणां च वामावयवेषु लाभः ॥ स्पंदाः फलानि प्रदिशंत्यवश्यं निहंति चोक्तांगविपर्ययेण ॥१०॥ ॥ टीका ॥ मुष्क इति ॥ मुष्के वृषणे ॥ 'मुष्कोंडकोशो वृषणम्' इत्यमरः ॥ सकंपे तनयस्य जन्म भवति।मुष्कशब्देनाडौ।बस्तिः मूत्रपुटंनाभेरधोभागः। बस्तिर्मूत्राशयेपिच॥ इति हैमः ॥ तत्प्रकंपे युवतिप्रवृद्धिः स्यात् दोष्णः प्रकंपे बाहुस्फुरणे पुनः ऊरुपृष्ठस्फुरणे च ऊरोः पुरस्ताच स्फुरणे सुसहायलाभः स्यात् ॥ ८॥ स्यादिति ॥ जानुकंपे अरिणा प्रधानशत्रुणा अचिरेण संधिर्भवति जंघाप्रकंपे लाभनाशः अर्द्ध चरणस्य कंपे स्थानाप्तिर्भवति चरणतलस्फुरणे यात्रां सलाभां वदंति ॥ ९॥ पुंसामिति ॥ पुसां पुरुषाणां सदा सर्वकालं दक्षिणदेहभागे स्त्रीणां तु वामावयवेषु जातः स्पंदः अवश्यं फलानि प्रदिशति प्रदत्ते । उक्तांगविपर्ययेण जातस्पंदः फ ॥ भाषा॥ और पुरुष स्त्री प्राप्ति होय, वरांगनाम स्त्री पुरुषके चिह्नको है ॥ ७ ॥ मुष्क इति ॥ अंडकोशफडके तो पुत्र जन्म होय और नाभिको अधोभाग फडके तो ( स्त्रीकी प्रवृद्धि करै, भुजाको और ऊरूके पृष्ठभागको और ऊरूके अग्रभागको फडकनो ये तीनों सहायीको लाभकरैहैं ॥ ॥ स्यादिति ॥ जानुफडके तो शीघ्रही वैरी करके संधि होय, और जंघा फडकै तो लाभको नाश होय, और चरणको ऊपरलोभाग फडकै तो स्थानप्राप्ति होय, चरणके नीचे तलुआ फडकै तो लाभ सहित यात्रा होय ॥ ९ ॥ पुंसामिति ॥ पुरुषनके जेमने अंगमें, और स्त्रीनके वांये अंगमें, फडकवेको फल लाभ अवश्य होय, और पुरुषनके बांये अंगमें स्त्रीनके जेमने अंगमें फडकवेके फल पहले कहे ते विपरीत करके कार्यना. For Private And Personal Use Only
SR No.020879
Book TitleVasantraj Shakunam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasantraj Bhatt, Bhanuchandravijay Gani
PublisherKhemraj Shrikrushnadas Shreshthi Mumbai
Publication Year1828
Total Pages596
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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