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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मिश्रितप्रकरणम् ४. जातोदये दीप्तककुब्बिभागे प्रशांतदिग्जेन कृतानुनादः ॥ अनर्थशंकां शकुनो विधाय निःसंशयं निष्फलतां प्रयाति ॥ ॥६८॥ प्रशांतदिग्जो विहितानुनादो यदा भवेदीप्तदिगुत्थितेन ॥ श्रेयस्तदानी शकुनः प्रदर्य प्रयाति वैफल्यमवश्यमेव ॥ ६९ ॥ पंचपाणि शकुनानि देहिनामुत्तरोत्तरकृतोदयानि चेत्।। पूर्वपूर्वमभिबाध्य निश्चितं तददाति शकुनोतिमः फलम् ॥ ७० ॥ ॥ टीका ॥ मार्गस्तस्मानिवर्तनेन वर्तनेन द्वे गती भवतः । इत्थं शकुनानामष्टौ गतयः पुरः अग्रे अष्टौ गतयः पृष्ठे च तथा चारपृष्ठाभ्यां षोडश गतयो निगदिताः॥६॥ जातोदय इति ॥ दीप्तककुब्विभागे जातोदये शकुने सति प्रशांतदिग्जेन कृतानुनाद इति प्रशांतदिक्षु जातः प्रशांतदिग्जस्तच्छ कुनेन कृतोऽनुनादो येन स तथा एवंविधो भ. वेत् तदा शकुनः अनर्थशंकां विधाय निःसंशयं निश्चितं निष्फलं प्रयाति ॥ ६८ ॥ प्रशांत इति ॥ दीप्तदिगुत्थितेन शकुनेन विहितानुनादः प्रशांतदिग्जो यदा शकुनो भवति तदानीं श्रेयः प्रदर्श्य शकुनः अवश्यमेव वैफल्यं प्रयाति ॥ ६९ ॥ पंचषाणीति ॥ उत्तरोत्तरकृतोदयानि उत्तरमुत्तरमने कृतो विहितः उदयो यै. ॥ भाषा॥ तो वांये माऊते दक्षिणभाग माऊकू जाय, और जो सन्मुख आवे ताकू अभिमुखी कहेहै अगाडीतूं उठकरके पीछेडू जाय, तांसू पराङ्मुखी कहै हैं और अगाडीते उठकरके ऊ नाम ऊपर• गमन करै याकू ऊर्ध्वमुखी कहै हैं, और ऊपरते नीचो मुख करके पडे ताकं अधोमुखी कहै हैं, और वायो जेमनो इनके अंतर द्वारमार्गस्तन वेष्टन करके अर्ध होय या प्रकार शकुननकी आठ प्रकारको गति है और आगे पृष्ट अगाडी पिछाडी करके षोडशगती ॥ ६७ ॥ जातोदय इति ॥ दीप्तदिशामें शकुन उदय होय ता पीछे शांत दिशाकरके कियोहै शब्द जाने ऐसो शकुन अनर्थकी शंका करहै निश्चय निष्फलता प्राप्त होय ॥ १८ ॥ प्रशांत इति ।। दीप्तदिशामें नाद होय और शांतदिशामें शकुन होय तब कल्याण होय वो शकुन अवश्यही विशेष फलदाता होय ॥ ६९ ॥ पंचषाणीति ॥ जा पुरुषकू उत्तरो. For Private And Personal Use Only
SR No.020879
Book TitleVasantraj Shakunam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasantraj Bhatt, Bhanuchandravijay Gani
PublisherKhemraj Shrikrushnadas Shreshthi Mumbai
Publication Year1828
Total Pages596
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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