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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir के आठ लाख अर्थ सम्भव हैं। इस ग्रन्थ ने सम्राट अकबर तथा उसके सभासदों को आश्चर्यचकित कर व हतप्रभ कर दिया था । अन्य भी महत्त्वपूर्ण रचनाएँ हैं, उन सब का निरूपण करना यहाँ सम्भव नहीं है। इसी तरह ऐतिहासिक महापुरुषों के जीवन चरित को भी महाकाव्यों में निबद्ध किया गया है। ऐसे महाकाव्यों में पद्मगुप्त (ई. 11) कृत 'नवसाहसांकचरित', आचार्य हेमचन्द्र (ई. 12वीं शती) कृत 'कुमारपालचरित', सर्वानन्द कवि रचित 'जगडूचरित' (जिसमें वि. 14वीं शती में हुए जगडूशाह का यशोगान किया गया है), उदयप्रभसूरि (13वीं शती) कृत 'धर्माभ्युदय' काव्य उल्लेखनीय हैं। लघुकाव्य, समस्यापूर्ति काव्य, सूक्तिकाव्य व सन्देश काव्य कुछ संस्कृत काव्य ऐसे भी हैं, जो महाकाव्य के सभी लक्षणों को पूरा नहीं करते और उनकी वस्तु-व्यापारों की योजना महाकाव्य-स्तर की नहीं होती । उनमें कथाप्रवाह के मोड़ कम होते हैं, प्रकृति - वर्णन आदि में भी अपेक्षित चमत्कारपूर्णता नहीं होती । ऐसे काव्यों में वादीभसिंह ( 9वीं शती) कृत 'क्षत्रचूड़ामणि काव्य', सोमकीर्ति (16वीं शती) कृत 'प्रद्युम्नचरित' तथा इसके अतिरिक्त, धनेश्वर सूरि (वि. 5वीं शती) कृत 'शत्रुंजयमाहात्म्य', भट्टारक सकलकीर्ति ( 14वीं शती) रचित 'सुदर्शनचरित' भी महत्त्वपूर्ण हैं । इसी तरह कुछ लघुकाव्य भी हैं, जिन्हें महाकाव्य या खण्डकाव्यों की श्रेणी में रखा नहीं जा सकता है। इनमें प्रायः छः से कम सर्ग ही हैं। ऐसे काव्यों में वादिराज (11वीं शती) कृत 'यशोधरचरित' व 'सुदर्शनचरित', जयतिलक ( 15वीं शती) कृत 'मलयसुन्दरीचरित', पद्मसुन्दर ( 17वीं शती) कृत 'रायमल्लाभ्युदयकाव्य', जगन्नाथ कवि (17वीं शती) कृत 'सुषेणचरित' आदि के नाम उल्लेख योग्य हैं। इसके अतिरिक्त, जयशेखर सूरि (वि. 15वीं शती) कृत 'जैनकुमारसम्भव' तथा चारित्रभूषण कृत ( चारित्रसुन्दरगणी) 'महीपालचरित' के नाम इस क्रम में परिगणनीय हैं। समस्यापूर्ति के रूप में भी कुछ काव्यों की रचना हुई है। उपाध्याय मेघविजय (17वीं शती ई.) ने 'शान्तिनाथचरित' की रचना की है, वह नैषधमहाकाव्य के प्रथम सर्ग के समस्त श्लोकों की समस्यापूर्ति के रूप में लिखा गया है। इसमें छ: सर्ग हैं। इन्हीं की दूसरी कृति देवानन्द है, जो माघ काव्य के प्रत्येक श्लोक के अन्तिम चरण को लेकर समस्यापूर्ति के रूप में है। कहीं कहीं माघ काव्य के प्रथम, द्वितीय या तृतीय चरण को भी समस्यापूर्ति हेतु आधार बनाया गया है। सात सर्गों वाले इस काव्य में विजयदेव सूरि का चरित वर्णित है। जैन परम्परा में सूक्ति काव्य भी प्रकाश में आये हैं, जिनमें उपदेश, प्रेम व नीति से सम्बन्धित काव्यात्मक अभिव्यक्ति हुई है। इनमें सदाचार-सम्बन्धी सार्वजनिक सिद्धान्तों संस्कृत साहित्य - परम्परा :: 803 For Private And Personal Use Only
SR No.020865
Book TitleJain Dharm Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhprasad Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2012
Total Pages876
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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