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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 13वीं शती) कृत 'पार्श्वनाथचरित' मलधारी हेमचन्द्र (वि. 14वीं शती) कृत 'नेमिनाथचरित', चन्द्रतिलक (वि. 14वीं शती) कृत 'अभयकुमारचरित', भावदेवसूरि (वि. 14वीं शती) कृत 'पार्श्वनाथचरित' आदि -आदि उल्लेखनीय हैं। उपर्युक्त काव्यों में 'कुमारपालचरित' (द्वयाश्रयकाव्य) इसलिए महत्त्वपूर्ण है कि इसमें राजा कुमारपाल के चरित के निरूपण के साथ-साथ प्राकृत व्याकरण के नियमों (सूत्रों) के उदाहरण भी प्रस्तुत किए गये हैं । इसी शैली के अनुरूप एक अन्य कृति ' श्रेणिकचरित' (दुर्गवृत्तिद्वयाश्रय महाकाव्य) है, जिसके रचयिता जिनप्रभसूरि (वि. 14वीं शती) हैं। इसमें श्रेणिक के चरित के निरूपण के साथ-साथ कातन्त्र व्याकरण के नियमों (सूत्रों) के प्रयोगों का व्यावहारिक रूप भी प्रस्तुत किया गया है। विशिष्ट महापुरुषों में कामदेवों के रूप में विख्यात प्रद्युम्न, जीवन्धर आदि पर भी संस्कृत महाकाव्य / काव्य लिखे जाते रहे हैं। इनमें महासेनाचार्य (11वीं शती), भट्टारक सकलकीर्ति ( 15वीं शती), शुभचन्द्र (17वीं शती) आदि कृत 'प्रद्युम्नचरित' प्रसिद्ध हैं । वादीभसिंह सूरि कृत ' क्षत्रचूडामणि' (जीवन्धरचरित), महाकवि हरिचन्द्र कृत 'जीवन्धर चम्पू' आदि अनेकानेक काव्य भी इसी कोटि के अन्तर्गत हैं। कुछ ऐसे भी जैन संस्कृत काव्य हैं जिनके नामों में 'चरित' शब्द अन्त में नहीं है, किन्तु वे महाकाव्य -सदृश ही हैं। ऐसे महाकाव्यों में महाकवि हरिचन्द्र (ई. 1112वीं शती) द्वारा रचित 'धर्मशर्माभ्युदय', वाग्भट द्वितीय (12वीं शती) कृत 'नेमिनिर्वाण', अभयदेवसूरि (वि. 13वीं शती) कृत 'जयन्तविजय', कवि वस्तुपाल (वि. 13वींशती) कृत 'नरनारायणानन्द', महाकवि बालचन्द्र ( 13-14वीं शती) कृत 'वसन्तविलास' आदि उल्लेखनीय हैं। इसी क्रम में महाकवि अर्हद्दास (13वीं शती) कृत 'मुनिसुव्रत महाकाव्य', महाकवि अमरचन्द्र कृत 'बालभारत' व 'पद्मानन्द' - ये दो महाकाव्य भी महत्त्वपूर्ण हैं । सन्धान- काव्य पूरा काव्य एकाधिक अर्थ को अभिव्यक्त करे, वह सन्धान काव्य होता है। इसके भी अनेक प्रकार हैं - द्विसन्धान, चतुस्सन्धान, सप्तसन्धान आदि आदि । इस तरह का प्रथम महाकाव्य है महाकवि धनञ्जय ( 8वीं शती) कृत 'द्विसन्धान महाकाव्य ' । मेघविजय उपाध्याय (18वीं शती) द्वारा रचित 'सप्तसन्धान महाकाव्य', हरिदत्त सूरि (18वीं शती) कृत 'राघवनैषधीय', सुराचार्य (वि. 11वीं शती) कृत 'नाभेयनेमिद्विसन्धान' महाकाव्य आदि भी उल्लेखनीय हैं। नाभेयनेमिद्विसन्धान काव्य में एक साथ तीर्थंकर ऋषभदेव तथा तीर्थंकर नेमिनाथ की कथाएँ समानान्तर चलती हैं। महोपाध्याय कविवर समयसुन्दर (वि. 17वीं शती) ने 'अष्टलक्षी' ग्रन्थ की रचना की है, जिसमें एक पद्य 802 :: जैनधर्म परिचय For Private And Personal Use Only
SR No.020865
Book TitleJain Dharm Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhprasad Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2012
Total Pages876
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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