SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 276
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallashsagarsun Gyanmandir देवजनेभ्यः अप्रतिपदं प्रतिपद्यते जातानीति प्रतिपत् प्रतथाविधं विकलमितार्थः 36. प्रयेभ्यः कितवं घृतकारम 37. ईर्य तायै अकितवमातकतम 38. पिशाचेभ्यः बिदलकारी वंशविदारिणीं वंशपात्रकारिणीम 38. यातुधामेभ्यः कण्टकीकारी कण्टकी कर्म तत्कारिणीम 40 // 8 // सन्धये जारसुपपतिम् ४१.गेहाय उपपतिं वाभि चारिणम् 42. पात्यै परिवित्तम् ऊढे कनिष्ठेऽन यदुर्मदङ्गन्धर्वाप्सरोभ्योजात्त्यम्प्रयुग्ग्भ्युऽउन्न्मत्त सर्पदेवजुने / भ्योप्प्रतिपटुमयेभ्यो कितुवमौर्यायाऽअकितवम्पिशाचेभ्योवि दलका यातुधानेभ्य कण्टकोकारीम् // 8 // मुन्धयेजारम् // सुन्धयेजारङ्गेहायोपपुतिमात्त्य परिवित्तुन्नित्यैपरिविविदानमरी ध्याऽएदिधिषुडपुतिन्निष्टोत्यैपेशकारीसंज्ज्जानायस्म्मरकारी ढम 43. नित्य परिविविदानम् पनूढे ज्येष्ठे ऊढवन्तम 44. पराध्यदेव्यै एदिधिषुःपतिम ज्येष्ठायां पुत्रधामनूढायामूढा एदि. विषुःतत्पतिम 45. निकिता पैशस्कारी रूपकौम 46. सज्ञानाय सूरकारी कामदीप्तिकरीम 47. प्रकामोद्याय तत्सअज्ञाय देवाय उपसिदतीत्युपसत् समीपस्थितस्तम 48. एतानग्निष्ट निय नति // अथ द्वितीये यू पे। वर्षाय' पनुरुधम् अनुरुध्यतेऽनु For Private And Personal
SR No.020861
Book TitleUvvatbhashya
Original Sutra AuthorN/A
Author
Publisher
Publication Year
Total Pages454
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy